गीता 13:21: Difference between revisions

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Revision as of 12:46, 21 March 2010

गीता अध्याय-13 श्लोक-21 / Gita Chapter-13 Verse-21

पुरुष: प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् ।
कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ।।21।।



प्रकृति में स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है ।।21।।

Only the purusa seated in prakrti senses objects of the nature of the three gunas evolved from prakrti. And it is contact with these gunas that is responsible for the birth of this soul in good and evil wombs. (21)


प्रकृतिस्थ: = प्रकृति में स्थित हुआ ; हि = ही ; पुरुष: = पुरुष ; प्रकृतिजान् = प्रकृति से उत्पन्न हुए ; गुणान् = त्रिगुणात्मक सब पदार्थों को ; भुक्डे = भोगता है ; गुणसग्ड: = गुणों का सग्ड ; एव = ही ; अस्य = इस जीवात्मा के ; सदसद्योनिजन्मसु = अच्छी बुरी योनियों में जन्म लेने में ; कारणम् = कारण है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)