गीता 14:23: Difference between revisions

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Revision as of 13:09, 21 March 2010

गीता अध्याय-14 श्लोक-23 / Gita Chapter-14 Verse-23


उदासीनवदासीनो गुणैर्या न विचाल्यते ।
गुणा वर्तन्त इत्येव योऽवतिष्ठति नेग्ङते ।।23।।



जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता और गुण ही गुणों में बरतते हैं- ऐसा समझता हुआ जो सच्चिदानन्दघन परमात्मा में एकीभाव से स्थित रहता है एवं उस स्थिति से कभी विचलित नहीं होता ।।23।।

He who, sitting like a witness is not disturbed by the Gunas and who knowing that the Gunas alone move among the Gunas, remains established in identity with God, and never falls off from that state. (23)


य: = जो ; उदासीनवत् = साक्षी के सद्य्श ; आसीन: = स्थित हुआ ; गुणै: = गुणों के द्वारा ; न विचाल्यते = विचलित नहीं किया जा सकता है (और) ; अवतिष्ठति = स्थित रहता है ; गुणा: एव = गुण ही गुणों में ; वर्तन्ते = बर्तते हैं ; इति = ऐसा (समझता हुआ) ; य: = जो (सच्चिदानन्दघन परमात्मा में एकीभाव से ) ; न इग्डते = उस स्थिति से चलायमान नहीं होता है



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)