गीता 2:14: Difference between revisions

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हे [[कुन्ती]]<ref>ये [[वसुदेव|वसुदेवजी]] की बहन और भगवान [[श्रीकृष्ण]] की बुआ थीं। [[महाभारत]] में महाराज [[पाण्डु]] की ये पत्नी थीं।</ref> पुत्र ! सर्दी-गर्मी और सुख-दु:ख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति, विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिये हे भारत<ref>पार्थ, पृथा-पुत्र, परन्तप, भारत, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! उनको तू सहन कर ।।14।।  
 
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Latest revision as of 06:19, 4 January 2013

गीता अध्याय-2 श्लोक-14 / Gita Chapter-2 Verse-14

प्रसंग-


इन सबको सहन करने से क्या लाभ होगा ? इस जिज्ञासा पर कहते हैं-


मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा:।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।14।।




हे कुन्ती[1] पुत्र ! सर्दी-गर्मी और सुख-दु:ख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति, विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिये हे भारत[2] ! उनको तू सहन कर ।।14।।


O son of Kunti, the contacts between the senses and their objects, which give rise to the feeling of heat and cold, pleasure and pain etc., are transitory and fleeting, therefore, Arjuna, ignore them.(14)


कौन्तेय = हे कुन्तीपुत्र ; शीतोष्णसुखदु:खदा: = दु:खको देने वाले ; मात्रास्पर्शा: = विषयोंके संयोग ; तान् = उनको (तूं) ; तु = तो ; आगमापायिन: = क्षणभग्डुंर (और) ; अनित्या: = अनित्य हैं (इसलिये) ; भारत = हे भरतवंशी अर्जुन ; तितिक्षस्व = सहन कर ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ये वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। महाभारत में महाराज पाण्डु की ये पत्नी थीं।
  2. पार्थ, पृथा-पुत्र, परन्तप, भारत, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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