गीता 6:23: Difference between revisions
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परमात्मा को प्राप्त पुरुष की स्थिति का नाम 'योग' है, यह कहकर उसे प्राप्त करना निश्चित कर्तव्य बतलाया गया ; अब दो श्लोकों में उसी स्थिति की प्राप्ति के लिये अभेदरूप से परमात्मा के ध्यान योग का साधन करने की रीति बतलाते हैं- | परमात्मा को प्राप्त पुरुष की स्थिति का नाम 'योग' है, यह कहकर उसे प्राप्त करना निश्चित कर्तव्य बतलाया गया; अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] में उसी स्थिति की प्राप्ति के लिये अभेदरूप से परमात्मा के ध्यान योग का साधन करने की रीति बतलाते हैं- | ||
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जो दु:ख रूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, उसको जानना | जो दु:ख रूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, उसको जानना चाहिये। वह योग न उकताये हुए अर्थात् धैर्य और उत्साह युक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना कर्तव्य है ।।23।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 06:21, 5 January 2013
गीता अध्याय-6 श्लोक-23 / Gita Chapter-6 Verse-23
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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