गीता 11:9: Difference between revisions

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¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">संजय</balloon> उसका वर्णन करते हैं-


'''सञ्जय उवाच-'''
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'''संजय बोले-'''
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हे राजन् ! महायोगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान् ने इस प्रकार कहकर उसके पश्चात अर्जुन को परम ऐश्वर्य युक्त दिव्य स्वरूप दिखलाया ।।9।।
हे राजन् ! महायोगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान् ने इस प्रकार कहकर उसके पश्चात [[अर्जुन]] को परम ऐश्वर्य युक्त दिव्य स्वरूप दिखलाया ।।9।।


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Revision as of 05:57, 6 January 2013

गीता अध्याय-11 श्लोक-9 / Gita Chapter-11 Verse-9

प्रसंग-


अर्जुन[1] को दिव्य दृष्टि देकर भगवान् ने जिस प्रकार का अपना दिव्य विराट् स्वरूप दिखलाया था, अब पाँच श्लोकों द्वारा संजय[2] उसका वर्णन करते हैं-

सञ्जय उवाच-


एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरि: ।
दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ।।9।।



संजय बोले-


हे राजन् ! महायोगेश्वर और सब पापों के नाश करने वाले भगवान् ने इस प्रकार कहकर उसके पश्चात अर्जुन को परम ऐश्वर्य युक्त दिव्य स्वरूप दिखलाया ।।9।।

Sanjaya said-


My lord ! having spoken thus, Sri Krishna, the supreme master of yoga, forthwith revealed to Arjuna His supremely glorious divine form. (9)


हरि: = सब पापों के नाश करनेवाले भगवान् ने; एवम् = इस प्रकार; उक्त्वा =कहकर; पार्थाय = अर्जुन के लिये; परमम् = परम; ऐश्वर्ययुक्त; रूपम् = दिव्य स्वरूप; दर्शयोमास = दिखाया



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. संजय धृतराष्ट्र की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।

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