गीता 15:7: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 9: | Line 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
उपर्युक्त प्रकार से बँधे हुए जीव का क्या स्वरूप है ? और उसका वास्तविक स्वरूप क्या है ? उसे कौन कैसे जानता है ? अत: इन सब बातों का स्पष्टीकरण करने के लिये पहले जीव का स्वरूप बतलाते हैं- | उपर्युक्त प्रकार से बँधे हुए जीव का क्या स्वरूप है? और उसका वास्तविक स्वरूप क्या है? उसे कौन कैसे जानता है? अत: इन सब बातों का स्पष्टीकरण करने के लिये पहले जीव का स्वरूप बतलाते हैं- | ||
---- | ---- | ||
Line 24: | Line 23: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षण करता है ।।7।। | इस देह में यह सनातन जीवात्मा मेरा ही अंश है और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] को आकर्षण करता है ।।7।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
Line 60: | Line 59: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
Latest revision as of 10:53, 6 January 2013
गीता अध्याय-15 श्लोक-7 / Gita Chapter-15 Verse-7
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
||||