गीता 18:17: Difference between revisions
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आत्मा सर्वथा शुद्ध, निर्विकार और अकर्ता है- यह बात समझाने के लिये आत्मा को 'कर्ता' मानने वाले की निन्दा करके अब आत्मा के यथार्थ स्वरूप को समझकर उसे अकर्ता समझने वाले की स्तुति करते हैं- | [[आत्मा]] सर्वथा शुद्ध, निर्विकार और अकर्ता है- यह बात समझाने के लिये आत्मा को 'कर्ता' मानने वाले की निन्दा करके अब आत्मा के यथार्थ स्वरूप को समझकर उसे अकर्ता समझने वाले की स्तुति करते हैं- | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 13:49, 6 January 2013
गीता अध्याय-18 श्लोक-17 / Gita Chapter-18 Verse-17
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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