गीता 18:18: Difference between revisions
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इस प्रकार संन्यास (ज्ञानयोग) का तत्त्व समझाने के लिये आत्मा के अकर्तापन का प्रतिपादन करके अब उसके अनुसार कर्म के अंग-प्रत्यंगों को भली-भाँति समझाने के लिये कर्म-प्रेरणा और कर्मसंग्रह का प्रतिपादन करते है- | इस प्रकार संन्यास (ज्ञानयोग) का तत्त्व समझाने के लिये [[आत्मा]] के अकर्तापन का प्रतिपादन करके अब उसके अनुसार कर्म के अंग-प्रत्यंगों को भली-भाँति समझाने के लिये कर्म-प्रेरणा और कर्मसंग्रह का प्रतिपादन करते है- | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Revision as of 13:49, 6 January 2013
गीता अध्याय-18 श्लोक-18 / Gita Chapter-18 Verse-18
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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