गीता 18:78: Difference between revisions

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इस प्रकार अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए गीता के उपदेश की और भगवान् के अद्भुत रूप की स्मृति का महत्त्व प्रकट करके, अब <balloon link="संजय " title="संजय को दिव्य दृष्टि का वरदान था । जिससे महाभारत युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम था । श्रीमद् भागवत् गीता का उपदेश जो कृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह भी संजय द्वारा ही सुनाया गया ।
इस प्रकार अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए गीता के उपदेश की और भगवान् के अद्भुत रूप की स्मृति का महत्त्व प्रकट करके, अब [[संजय]]<ref>संजय [[धृतराष्ट्र]] की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।</ref>, [[धृतराष्ट्र]]<ref>धृतराष्ट्र [[पाण्डु]] के बड़े भाई थे। [[गाँधारी]] इनकी पत्नी थी और [[कौरव]] इनके पुत्र। ये पाण्डु के बाद [[हस्तिनापुर]] के राजा बने थे।</ref> से [[पाण्डव|पाण्डवों]]<ref>पांडव [[कुन्ती]] के पुत्र थे। इनके नाम [[युधिष्ठर]], [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]] और [[सहदेव]] थे।</ref> की विजय की निश्चित संभावना प्रकट करते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-  
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हे राजन् ! जहाँ योगेश्वर भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है ।।78।।
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Latest revision as of 07:30, 7 January 2013

गीता अध्याय-18 श्लोक-78/ Gita Chapter-18 Verse-78

प्रसंग-


इस प्रकार अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए गीता के उपदेश की और भगवान् के अद्भुत रूप की स्मृति का महत्त्व प्रकट करके, अब संजय[1], धृतराष्ट्र[2] से पाण्डवों[3] की विजय की निश्चित संभावना प्रकट करते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-


यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।।78।



हे राजन् ! जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण[4] हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन[5] हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है ।।78।।

Wherever there is Bhagavan Shri Krishna, the Lord of Yoga, and wherever there is Arjuna, The wielder of the Gandiva bow, goodness, victory, glory and unfailing righteousness are there, such is my conviction. (78)


यत्र = जहां; योगेश्वर: = योगेश्वर; कृण्ण: = श्रीकृष्ण भगवान् हैं; यत्र = जहां; धनुर्धर: = गाण्डीव धनुषधारी; पार्थ: = अर्जुन है; तत्र = वहीं पर; ध्रुवा = अचल; मति: = मत है।



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संजय धृतराष्ट्र की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।
  2. धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे। गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र। ये पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने थे।
  3. पांडव कुन्ती के पुत्र थे। इनके नाम युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे।
  4. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
  5. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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