गीता 18:60: Difference between revisions

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Revision as of 14:04, 21 March 2010

गीता अध्याय-18 श्लोक-60 / Gita Chapter-18 Verse-60


स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध: स्वेन कर्मणा ।
कर्तुंनेच्छसि यन्मोहात् करिष्यस्यवशोऽपि तत् ।।60।।



हे <balloon link="कुन्ती" title="ये वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। महाभारत में महाराज पाण्डु की पत्नी । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">कुन्ती</balloon> पुत्र ! जिस कर्म को तू मोह के कारण करना नहीं चाहता, उसको भी अपने पूर्व कृत स्वाभाविक कर्म से बँधा हुआ परवश होकर करेगा ।।60।।

That action too which you are not willing to undertake through ignorance, bound by your own duty born of your nature, you will helplessly perform.(60)


कैन्तेय = हे अर्जुन ; यत् = जिस कर्म को (तूं) ; मोहात् = मोहसे ; न = नहीं ; कर्तुम् = करना ; इच्छसि = चाहता है ; तत् = उसको ; अपि = भी ; स्वेन = अपने (पूर्वकृत) ; स्वभावजेन = स्वाभाविक ; कर्मणा = कर्मसे ; निबद्ध: = बंधा हुआ ; अवश: = परवश होकर ; करिष्यसि = करेगा



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)