गीता 5:2: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 61: Line 61:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 15:07, 21 March 2010

गीता अध्याय-5 श्लोक-2 / Gita Chapter-5 Verse-2

प्रसंग-


सांख्ययोग की अपेक्षा कर्मयोग को श्रेष्ठ बतलाया । अब उसी बात को सिद्ध करने के लिये अगले श्लोक में कर्मयोगी की प्रशंसा करते हैं


संन्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगी विशिष्यते ।।2।।



श्रीभगवान् बोले-


कर्म संन्यास और कर्मयोग-ये दोनों ही परम कल्याण के करने वाले हैं, परंतु उन दोनों में भी कर्म संन्यास से कर्मयोग साधन में सुगम होने से श्रेष्ठ है ।।2।।

Sri Bhagavan said:


The Yoga of knowledge and the Yoga of action both lead to supreme Bliss. Of the two, however, the Yoga of action being easier of practice is superior to the Yoga of knowledge. (2)


संन्यास: = कर्मों का संन्यास; कर्मयोग: = निष्काम कर्मयोग; उभौ = यह दोनों ही; नि:श्रेयसकरौ = परम कल्याण के करने वाले हैं; तु =परन्तु; तयो: = उन दोनों में भी; कर्म संन्यासात् = कर्मों के संन्यास से; कर्मयोग; निष्काम कर्म योग (साधन सुगम होने से); विशिष्यते = श्रेष्ठ है



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)