गीता 6:18: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 59: Line 59:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 15:09, 21 March 2010

गीता अध्याय-6 श्लोक-18 / Gita Chapter-6 Verse-18

प्रसंग-


वश में किया हुआ चित्त ध्यान काल में जब एकमात्र परमात्मा में ही अचल स्थित हो जाता है, उस समय उस चित्त की कैसी अवस्था हो जाती है, यह जानने की आकांक्षा होने पर कहते हैं-


यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते ।
नि:स्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ।।18।।



अत्यन्त वश में किया हुआ चित्त जिस काल में परमात्मा में ही भली-भाँति स्थित हो जाता है, उस काल में सम्पूर्ण भोगों से स्पृहारहित पुरुष योग युक्त है, ऐसा कहा जाता है ।।18।।

When the mind which is thoroughly disciplined gets riveted on god alone, then the person who is free from yearing for all enjoyments is said to be established in Yoga.(18)


विनियतम् = अत्यन्त वश में किया हुआ; चित्तम् = चित्त; यदा = जिस काल में; आत्मनि = परमात्मा में; अवतिष्ठते = भली प्रकार स्थित हो जाता है; तदा = उस काल में; सर्वकामेभ्य: = संपूर्ण कामनाओं से; नि:स्पृह: = स्पृहारहित हुआ पुरुष; युक्त: = योगयुक्त; इति = ऐसा;उच्चते = कहा जाता है



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)