गीता 6:29: Difference between revisions

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Revision as of 15:11, 21 March 2010

गीता अध्याय-6 श्लोक-29 / Gita Chapter-6 Verse-29

प्रसंग-


इस प्रकार सांख्ययोग का साधन करने वाले योगी का और उसकी सर्वत्र समदर्शन रूप अन्तिम स्थिति का वर्णन करने के बाद, अब भक्ति योग का साधन करने वाले योगी की अन्तिम स्थिति का और उसके सर्वत्र भगवतदर्शन का वर्णन करते हैं-


सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूता न चात्मनि ।
इक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन: ।।29।।



सर्वव्यापी अनन्त चेतन में एकी भाव से स्थिति रूप योग से युक्त आत्मा वाला तथा सबमें समभाव से देखने वाला योगी आत्मा को सम्पर्ण भूतों में स्थित और सम्पूर्ण भूतों को आत्मा में कल्पित देखता है ।।29।।

The yogi who is united in indentity with the all-pervading, infinite consciousness; and sees unity everywhere, beholds the self present in all beings, and all beings as assumed in the self. (29)


योगयुक्तात्मा = सर्वव्यापी अनन्त चेतन में एकीभाव से स्थित रूप योग से युक्त हुए आत्मावाला (तथा); सर्वत्र = सब में; समदर्शन: = समभाव से देखने वाला योगी; आत्मानम् = आत्मा को; सर्वभूतस्थम् = संपूर्ण भूतों में बर्फ में जल के सदृश व्यापक देखता है; सर्वभूतानि = संपूर्ण भूतों को; आत्मनि = आत्मा में; ईक्षते = देखता है।



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)