गीता 10:3: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
Line 19: Line 19:
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|


जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।।3।।  
जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान् ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।।3।।  


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Line 30: Line 30:
|-
|-
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
माम् = मेरे को; अजम् = अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित(और); अनादिम् = अनादि; लोकमहेश्वरम् = लोकों का महान ईश्वर; वेत्ति = तत्त्व से जानता है; स: = वह; मर्त्येषु = मनुष्यों में; असंमूढ: ज्ञानवान् = (पुरुष); सर्वपापै: = संपूर्ण पापों से प्रमुच्यते = मुक्त हो जाता है
माम् = मेरे को; अजम् = अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित(और); अनादिम् = अनादि; लोकमहेश्वरम् = लोकों का महान् ईश्वर; वेत्ति = तत्त्व से जानता है; स: = वह; मर्त्येषु = मनुष्यों में; असंमूढ: ज्ञानवान् = (पुरुष); सर्वपापै: = संपूर्ण पापों से प्रमुच्यते = मुक्त हो जाता है
|-
|-
|}
|}

Latest revision as of 14:12, 30 June 2017

गीता अध्याय-10 श्लोक-3 / Gita Chapter-10 Verse-3


यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असंमूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते ।।3।।



जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान् ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।।3।।

He who know me in reality as birthless and without beginning, and as the supreme Lord of the universe, he, undeluded among men, is purged of all sins. (3)


माम् = मेरे को; अजम् = अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित(और); अनादिम् = अनादि; लोकमहेश्वरम् = लोकों का महान् ईश्वर; वेत्ति = तत्त्व से जानता है; स: = वह; मर्त्येषु = मनुष्यों में; असंमूढ: ज्ञानवान् = (पुरुष); सर्वपापै: = संपूर्ण पापों से प्रमुच्यते = मुक्त हो जाता है



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख