अल्प ख़ाँ (दिलावर ख़ाँ ग़ोरी पुत्र): Difference between revisions
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'''अल्प ख़ाँ''' (1406-1435) [[मालवा]] के सुल्तान 'दिलावर ख़ाँ ग़ोरी' का बेटा और उसका उत्तराधिकारी था। [[पिता]] की मृत्यु के बाद अल्प ख़ाँ 'हुशंगशाह' की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। भाग्य ने उसका साथ बहुत ही कम दिया था, क्योंकि उसने जितने भी युद्ध लड़े, उनमें से अधिकांश युद्धों में उसे पराजय का ही सामना करना पड़ा। | '''अल्प ख़ाँ''' (1406-1435) [[मालवा]] के सुल्तान 'दिलावर ख़ाँ ग़ोरी' का बेटा और उसका उत्तराधिकारी था। [[पिता]] की मृत्यु के बाद अल्प ख़ाँ 'हुशंगशाह' की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। भाग्य ने उसका साथ बहुत ही कम दिया था, क्योंकि उसने जितने भी युद्ध लड़े, उनमें से अधिकांश युद्धों में उसे पराजय का ही सामना करना पड़ा। | ||
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thumb|250px|हुशंगशाह का मक़बरा अल्प ख़ाँ (1406-1435) मालवा के सुल्तान 'दिलावर ख़ाँ ग़ोरी' का बेटा और उसका उत्तराधिकारी था। पिता की मृत्यु के बाद अल्प ख़ाँ 'हुशंगशाह' की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। भाग्य ने उसका साथ बहुत ही कम दिया था, क्योंकि उसने जितने भी युद्ध लड़े, उनमें से अधिकांश युद्धों में उसे पराजय का ही सामना करना पड़ा।
- दिलावर ख़ाँ ग़ोरी ने 1401 ई. में मालवा में अपना राज्य स्थापित किया था। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र अल्प ख़ाँ ने राजगद्दी प्राप्त की।
- गद्दी पर बैठने के बाद अल्प ख़ाँ ने 'हुशंगशाह' की उपाधि धारण की और सत्ता सम्भाल ली।
- अल्प ख़ाँ ने 1435 ई. में अपनी मृत्यु तक मालवा पर राज्य किया।
- जोख़िम उठाने, दुष्कर कार्य करने और युद्ध करने में अल्प ख़ाँ को बड़ा आनन्द मिलता था।
- दिल्ली, जौनपुर, गुजरात के सुल्तानों और बहमनी सुल्तान अहमदशाह से उसने युद्ध किये, लेकिन अधिकांश युद्धों में उसे विफलता ही हाथ लगी।
- हुशंगशाह ने अपनी राजधानी को धार से मांडू स्थानान्तरित कर लिया था।
- धर्मनिरपेक्ष नीति का पालन करते हुए हुशंगशाह ने प्रशासन में अनेक राजपूतों को शामिल किया।
- नरदेव सोनी (जैन) हुशंगशाह के प्रशासन में खजांची था।
- अपने शासनकाल में हुशंगशाह ने ‘ललितपुर मंदिर’ का निर्माण करवाया।
- हुशंगशाह एक महान् विद्वान् और रहस्यवादी सूफ़ी सन्त शेख़ बुरहानुद्दीन का शिष्य था।
- 1435 ई. में अल्प ख़ाँ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र गजनी ख़ाँ 'मुहम्मदशाह' की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। उसकी अयोग्यता के कारण इसके वज़ीर महमूद ख़ाँ ने उसे अपदस्थ कर ‘महमूदशाह’ की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठ गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 18 |