गीता 2:38

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:47, 4 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-2 श्लोक-38 / Gita Chapter-2 Verse-38

प्रसंग-


यहाँ तक भगवान् ने सांख्य योग के सिद्धान्त से तथा क्षत्रिय धर्म की दृष्टि से युद्ध का औचित्य सिद्ध करके अर्जुन[1] को समतापूर्वक युद्ध करने के लिये आज्ञा दी। अब कर्मयोग के सिद्धान्त से युद्ध का औचित्य बतलाने के लिये कर्मयोग के वर्णन की प्रस्तावना करते हैं-


सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभो जयाजयौ ।
ततो यूद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ।।38।।




जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दु:ख को समान समझ कर, उसके बाद युद्ध के लिये तैयार हो जा। इस प्रकार युद्ध करने से तू पाप को नहीं प्राप्त होगा ।।38।।


Treating alike victory and defeat, gain and loss, pleasure and pain, get ready for the fight; then, fighting thus you will not incur sin.(38)


सुखदु:खे = सुख दु:ख ; लाभालाभो = लाभ हानि (और) ; जयाजयौ = जय पराजयको ; समे = समान ; कृत्वा = समझकर ; तत: = उसके उपरान्त ; युद्धाय = युद्धके लिये ; युज्यस्व = तैयार हो ; एवम् = इस प्रकार ; (युद्ध करनेसे) ; (तूं) ; पापम् = पापको ; न = नहीं ; अवाप्स्यसि = प्राप्त होगा



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः