गीता 14:2

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:39, 19 March 2010 by Ashwani Bhatia (talk | contribs) (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-14 श्लोक-2 / Gita Chapter-14 Verse-2


इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागता: ।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ।।2।।



इस ज्ञान को आश्रय करके अर्थात् धारण करके मेरे स्वरूप को प्राप्त हुए पुरुष सृष्टि के आदि में पुन: उत्पन्न नहीं होते और प्रलयकाल में भी व्याकुल नहीं होते ।।2।।

Those who, by practicing this wisdom, have entered into my being are not born again at the cosmic dawn nor feel distrurbed even during the cosmic night. (2)


इदम् = इस ; ज्ञानम् = ज्ञानको ; उपाश्रित्य = आश्रम करके अर्थात् धारण करके ; मम = मेरे ; साधर्म्यम् = स्वरूप को ; आगता: = प्राप्त हुए पुरुष ; सर्गें = सृष्टि के आदिमें (पुन:) ; न उपजायन्ते = उत्पन्न नहीं होते है ; च = और ; प्रलये = प्रलय काल में ; अपि = भी ; न व्यथन्ति = व्याकुल नहीं होते हैं



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः