अश्वत्थामा हाथी

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महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा नामक हाथी को भीम ने मार दिया और यह शोर किया कि अश्वत्थामा मारा गया। चूँकि द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था और यह भी निश्चित था कि अपने पुत्र से प्रेम करने के कारण द्रोणाचार्य अश्वत्थामा की मृत्यु का सामाचार सुनकर स्वयं भी प्राण त्याग देगें। इसलिए कृष्ण की योजनानुसार यह पूर्व नियोजित ही था।

यह सामाचार सत्य है या नहीं इसकी जानकारी के लिए द्रोणाचार्य ने कभी झूठ न बोलने वाले सत्यवादी पाण्डव युधिष्ठिर से पूछा- "युधिष्ठिर! क्या यह सत्य है कि मेरा पुत्र अश्वत्थामा मारा गया।" युधिष्ठिर ने कहा "अश्वत्थामा हतोहतः, नरो वा कुञ्जरोवा" (अश्वत्थामा मारा गया, मनुष्य नहीं पशु)। युधिष्ठिर ने 'नरो वा कुञ्जरोवा' अत्यंत धीमे स्वर में कहा जो द्रोणाचार्य सुन नहीं पाये और उन्होंने अस्त्र शस्त्र त्याग कर अपने रथ में समाधिस्थ होकर प्राण त्याग दिये। इस अवसर का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया।



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