इस प्रकार देवी-सम्पत् और आसुरी-सम्पत् से युक्त पुरुषों के लक्षणों का वर्णन करके अब भगवान् दोनों सम्पदाओं का फल बतलाते हुए अर्जुन को दैवी- सम्पदा से युक्त बतलाकर आश्वासन देते हैं-
दैवीसंपद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता ।
मा शुच: संपदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ।।5।।
दैवी-सम्पदा मुक्ति के लिये और आसुरी-सम्पदा बाँधने के लिये मानी गयी है । इसलिये हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी-सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है ।।5।।
The divine gift has been recognized as conducive to liberation, and the demoniac gift as conducive to bondage; Grieve not, Arjuna; for you are born with the divine endowment.(5)
दैवी संपत् = दैवी संपदा (तो) ; विमोक्षाय = मुक्ति के लिये (और) ; आसुरी = आसुरी (संपदा) ; निबन्धाय = बांधने के लिये ; मता = मानी गयी हे ; (अत:) = इसलिये ; पाण्डव = हे अर्जुन (तूं) ; मा शुच: = शोक मत कर ; (यत:) = क्योंकि (तूं) ; दैवीम् = दैवी ; संपदम् = संपदा को ; अभिजात: = प्राप्त हुआ ; असि = है ;