गीता 18:78

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गीता अध्याय-18 श्लोक-78/ Gita Chapter-18 Verse-78

प्रसंग-


इस प्रकार अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए गीता के उपदेश की और भगवान् के अद्भुत रूप की स्मृति का महत्व प्रकट करके, अब <balloon link="संजय " title="संजय को दिव्य दृष्टि का वरदान था । जिससे महाभारत युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम था । श्रीमद् भागवत् गीता का उपदेश जो कृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह भी संजय द्वारा ही सुनाया गया । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">संजय</balloon>, <balloon link="धृतराष्ट्र" title="धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे । गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र । पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने ।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">धृतराष्ट्र</balloon> से <balloon link="पांडव" title="पांडव कुन्ती के पुत्र थे। इनके नाम युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">पाण्डवों</balloon> की विजय की निश्चित संभावना प्रकट करते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-


यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।।78।



हे राजन् ! जहाँ योगेश्वर भगवान् <balloon link="कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">श्रीकृष्ण</balloon> हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है ।।78।।

Wherever there is Bhagavan Shri Krishna, the Lord of Yoga, and wherever there is Arjuna, The wielder of the Gandiva bow, goodness, victory, glory and unfailing righteousness are there, such is my conviction. (78)


यत्र = जहां; योगेश्वर: = योगेश्वर; कृण्ण: = श्रीकृष्ण भगवान् हैं; यत्र = जहां; धनुर्धर: = गाण्डीव धनुषधारी; पार्थ: = अर्जुन है; तत्र = वहीं पर; ध्रुवा = अचल; मति: = मत है।



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
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