इस प्रकार श्रोता के अन्त:करण में रूचि और श्रद्वा उत्पन्न करने के लिये कर्मतत्त्व को गहन एवं उसका जानना आवश्यक बतलाकर अब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार भगवान् कर्म का तत्व समझाते हैं-
कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये और अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये; तथा निषिद्ध कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए; क्योंकि कर्म की गति गहन है ।।17।।
The truth about action must be known and the ruth of inaction also must be known; even so the truth about prohibited action must be known. For mysterious are the ways of action.(17)
कर्मण = कर्म का स्वरूप; आपि = भी; बोद्वव्यम् = जानना चाहिये; च = और; अकर्मण: = अकर्म का स्वरूप (भी); बोद्वव्यम् = जानना चाहिये; च = तथा; विकर्मण: = निषिद्व कर्म का स्वरूप (भी); बोद्वव्यम् = जानना चाहिये; हि = क्योंकि; कर्मण: = कर्म की; गति: = गति; गहना = गहन है