गीता 2:13

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:16, 4 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-2 श्लोक-13 / Gita Chapter-2 Verse-13

प्रसंग-


भगवान् सब प्रकार के संयोग-वियोगादि को अनित्य बतलाकर उनको सहन करने की आज्ञा देते हैं-


देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्राति ।।13।।




जैसे जीवात्मा की इस देह में बालक पन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता ।।13।।


ust as boyhood, youth and old age are attributed to the soul through this body, even so it attains another body. The wise man does not get deluded about this.(13)


यथा = जैसे ; देहिन: = जीवात्माकी ; अस्मिन् = इस ; जरा = वृद्ध अवस्था (होती है) ; तथा = वैसे ही ; देहान्तरप्रप्ति = अन्य शरीरकी प्राप्ति होती है ; देहे = देहमें ; कौमारम् = कुमार ; यौवनम् = युवा (और) ; तत्र = उस विषयमें ; धीर: = धीर पुरुष ; न = नहीं ; मुह्राति = मोहित होता है ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः