गीता 2:21

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गीता अध्याय-2 श्लोक-21 / Gita Chapter-2 Verse-21

प्रसंग-


आत्मा का जो एक शरीर से सम्बन्ध छूटकर दूसरे शरीर से सम्बन्ध होता है, उसमें उसे अत्यन्त कष्ट होता है; अत: उसके लिये शोक करना कैसे अनुचित है? इस पर कहते हैं-


वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् ।
कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ।।21।।




हे पृथापुत्र अर्जुन[1] ! जो पुरुष इस आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यय जानता है, वह पुरुष कैसे किसको मरवाता है और कैसे किसको मारता है ।।21।।


Arjuna, the man who knows this soul to be imperishable, eternal and free from birth and decay, - how and whom will he cause to be killed, how and whom will he kill ? (21)


पार्थ = हे पृथापुत्र अर्जुन ; य: = जो पुरुष ; एनम् = इस आत्माको ; अविनाशिनम् = नाशरहित ; नित्यम् = नित्य ; अजम् = अजन्मा (और) ; अव्ययम् = अव्यय ; वेद = जानता है ; स: = वह ; पुरुष: = पुरुष ; कथम् = कैसे ; कम् = किसको ; हन्ति = मारता है ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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