गीता 2:22

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:43, 4 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-2 श्लोक-22 / Gita Chapter-2 Verse-22

प्रसंग-


इस प्रकार एक शरीर से दूसरे शरीर के प्राप्त होने में शोक करना अनचित सिद्ध करके, अब भगवान् आत्मा का स्वरूप दुर्विज्ञेय होने के कारण पुन: तीन श्लोकों द्वारा प्रकारान्तर से उसकी नित्यता, निराकरता और निर्विकारता का प्रतिपादन करते हुए उसके विनाश की आशंका से शोक करना अनुचित सिद्ध करते हैं।


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।22।।




जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नये शरीरों को प्राप्त होता है ।।22।।


As a man shedding worn- out garments, takes other new ones, likewise the embodied soul, casting off worn-out bodies, enters into others which are new.(22)


यथा = जैसे ; नर: = मनुष्य ; जीर्णानि = पुराने ; वासांसि = वस्त्रोंको ; विहाय = त्यागकर ; अपराणि = दूसरे ; नवानि = नये वस्त्रोंको ; गृह्राति = ग्रहण करता है ; तथा = वैसे (ही) ; देही = जीवात्मा ; जीर्णानि = पुराने ; शरीराणि = शरीरोको ; विहाय = त्यागकर ; अन्यानि = दूसरे ; नवानि = नये शरीरोंको ; संयाति = प्राप्त होता है ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः