गीता 10:16

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:15, 5 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-10 श्लोक-16 / Gita Chapter-10 Verse-16


वक्तुमर्हस्यशेषेण
दिव्या ह्रात्मविभूतय: ।
यार्भिर्विभूतिभिर्लोका-
निमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ।।16।।



इसलिये आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को सम्पूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों के द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं ।।16।।

Therefore, You alone can describe in full your divine glories, whereby you stand pervading all these worlds. (16)


त्वम् = आप; हि = ही(उन); दिव्या: आत्म विभूतय: = अपनी दिव्य विभूतियों को; अशेषेण = संपूर्णता से; वक्तुम् = कहने के लिये; अर्हसि = योग्य हैं (कि); याभि = जिन; विभूतिभि: = विभूतियों के द्वारा; इमान् = इन सब; लोकान् = लोकों को; व्याप्य = व्याप्त करके; तिष्ठसि = स्थित हैं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः