मेरा जो चतुर्भुज रूप तुमने देखा है, यह सुदुर्दश है अर्थात् इसके दर्शन बड़े ही दुर्लभ हैं। देवता भी सदा इस रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं ।।52।।
Shri Bhagavan said-
This form of mine (with four arms) which you have just seen is exceedingly difficult to perceive. Even the gods are always eager to behold this form. (52)
इदम् = यह; रूपम् = (चतुर्भुज) रूप; सुदुर्दर्शम् = देखने को अति दुर्लभ है (कि); यत् = जिसको(तुमने); दृष्टवानसि = देखा है; (यतJ = क्योंकि; अपि = भी; नित्यम् = सदा; दर्शनकाडिण: = दर्शन करने की इच्छावाले हैं;
↑महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।