गीता 16:20

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:19, 6 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-16 श्लोक-20 / Gita Chapter-16 Verse-20

आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि ।

मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ।।20।।


हे अर्जुन[1] ! वे मूढ मुझको न प्राप्त होकर जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं, फिर उससे भी अति नीच गति को ही प्राप्त होते हैं अर्थात् घोर नरकों में पड़ते हैं ।।20।।

Failing to reach Me, Arjuna, these stupid souls are born life after life in demoniac wombs and then verily sink down to a still lower plane. (20)


कौन्तेय = हे अर्जुन ; मूढा: = वे मूढ पुरुष ; जन्मनि = जन्म ; आपन्ना: = प्राप्त हुए ; माम् = मेरे को ; अप्राप्य = न प्राप्त होकर ; तत: = उससे भी ; अधमाम् = अति नीच ; जन्मनि = जन्म में ; आसुरीम् = आसुरी ; योनिम् = योनि को ; गतिम् = गति को ; एव = ही ; यान्ति = प्राप्त होते हैं अर्थात् घोर नरकों में पडते हैं ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः