पांडव वनगमन

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एक बार जुए मे हारने पर अंधे धृतराष्ट्र द्वारा युधिष्ठर को उनका सबकुछ वापस करने के बाद शकुनि और दुर्योधन ने युधिष्ठर को फिर से जुआ खेलने बुलाया और उन्हें हरा दिया, और शर्त अनुसार बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास जाने के लिये विवश कर दिया।

वनवास

युधिष्ठिर को जुए में हार जाने की शर्त के अनुसार अपने भाइयों के साथ बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास बिताना था। युधिष्ठिर ने माता कुंती को विदुर के घर पहुँचा दिया तथा सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्रों को लेकर अपने मायके चली गई। पांडव द्रौपदी तथा अपने पुरोहित धौम्य के साथ वन को चल दिए। अनेक ब्राह्मण भी उनके साथ चल दिए।

सूर्य की उपासना

ब्राह्मणों को साथ देखकर पुरोहित धौम्य की सलाह पर युधिष्ठिर ने सूर्य की उपासना की और सूर्यदेव ने उन्हें एक अक्षयपात्र दिया जिसका भोजन कभी समाप्त नहीं होगा। उस अक्षयपात्र से द्रौपदी ब्राह्मणों को तथा पांडवों को भोजन खिलाती तथा अंत में खुद खाती। इस बीच विदुर पांडवों की प्रशंसा करने पर धृतराष्ट्र ने विदुर को निकाल दिया, पर कुछ ही दिनों में विदुर की याद आने पर उन्हें फिर बुला लिया।

अर्जुन को सलाह

पांडव वन में अपना जीवन बिताने लगे। वन में ही व्यासजी पांडवों से मिले तथा सलाह दी कि वन में रहकर दिव्यास्त्रों की शिक्षा प्राप्त करो। उन्होंने अर्जुन को सलाह दी कि कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान पशुपति से दिव्यास्त्र तथा इंद्र से अमोघ अस्त्र भी प्राप्त करें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 142 |


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