संकुल युद्ध

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संकुल युद्ध प्राचीन समय लड़ा जाता था। इस युद्ध में सैनिक अपने विरोधी दल पर झुंड-के-झुंड में टूट पड़ते थे। महाभारत में भी संकुल युद्ध का उल्लेख मिलता है।

  • जब महाभारत युद्ध शुरू हुआ तो पहले बड़े योद्धाओं में द्वंद्व होने लगा। बराबर की ताकत वाले, एक ही जैसे हथियार लेकर दो-दो की जोड़ी में लड़ने लगे। अर्जुन के साथ भीष्म, सात्यकि के साथ कृतवर्मा और अभिमन्यु बृहत्पाल के साथ भिड़ गये। भीमसेन दुर्योधन से जा भिड़ा। युधिष्ठिर शल्य के साथ लड़ने लगे। धृष्टद्युम्न ने आचार्य द्रोण पर सारी शक्ति लगाकर हमला बोल दिया। इसी प्रकार प्रत्‍येक वीर युद्ध-धर्म का पालन करता हुआ द्वंद्व युद्ध करने लगा।
  • हज़ारों द्वंद्व युद्धों के अतिरिक्त महाभारत युद्ध में ‘संकुल युद्ध’ भी होने लगा। हज़ारों-लाखों सैनिकों के झुंड-के-झुंड जाकर विरोधी सैनिक-दल पर टूट पड़ने लगे। इस प्रकार एक दल के दूसरे दल से लड़ने को ‘संकुल युद्ध’ कहा जाता था।
  • दोनों पक्ष के असंख्‍य सैनिक पागलों की भांति अंधाधुंध लड़े और गाजर-मूली की भांति कट-मरे। रक्‍त और मांस के साथ रौंदी जाकर हरी-भरी भूमि कीचड़ भरे दलदल-सी बन गई। ऊपर से कितने ही घोड़े और हाथी भी इस दलदल में कट-कट कर गिरे। इस कारण रथों का चलना कठिन हो गया। उनके पहिये कीचड़ में धंस जाते थे। कभी-कभी लाशों में फंस जाने से रथ भी रुक जाते थे। आजकल की युद्ध-प्रणाली में द्वंद्व युद्ध की प्रथा ही बंद हो गई है। अंधाधुंध ‘संकुल-युद्ध’ ही हुआ करता है।


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