Difference between revisions of "बकासुर"

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*पांचों [[पांडव]] तथा [[कुंती]] [[कौरव|कौरवों]] से बचने के लिए एकचक्रा नामक नगरी में, छद्मवेश में एक ब्राह्मण के घर रहने लगे। वे लोग भिक्षा मांगकर अपना निर्वाह करते थे। उस नगरी के पास बक नामक एक असुर रहता था। एकचक्रा नगरी का शासक दुर्बल था, अत: वहां बकासुर का आतंक छा गया था। बकासुर शत्रुओं तथा हिंसक प्राणियों से नगरी की सुरक्षा करता था। तथा फलस्वरूप नगरवासियों ने यह नियत कर दिया था कि वहां के निवासी गृहस्थ बारी-बारी से उसके एक दिन के भोजन का प्रबंध करेंगे। बकासुर नरभक्षी था। उसको प्रतिदिन बीस खारी अगहनी के चावल, दो भैंसे तथा एक मनुष्य को आवश्यकता होती थी। उस दिन पांडवों के आश्रयदाता ब्राह्मण की बारी थी। उसके परिवार में पति-पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री थे। वे लोग निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि किसको बकासुर के पास भेजा जाय। कुंती की प्रेरणा से ब्राह्मण के स्थान पर खाद्य सामग्री लेकर [[भीम]]सेन बकासुर के पास गया। पहले तो वह बक को चिढ़ाकर उसके लिए आयी हुई खाद्य सामग्री खाता रहा, फिर उससे द्वंद्व युद्ध कर भीम ने उसे मार डाला। भीमसेन ने उसके परिवारजनों से कहा कि वे लोग नर-मांस का परित्याग कर देंगे तो भीम उनको नहीं मारेगा। उन्होंने स्वीकार कर लिया। पांडवों ने उस ब्राह्मण से प्रतिज्ञा ले ली कि वह किसी पर यह प्रकट नहीं होने देगा कि बकासुर को भीमसेन ने मारा है। <ref>महाभारत, [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]], अध्याय 156 से 163 तक</ref>
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*पांचों [[पांडव]] तथा [[कुंती]] [[कौरव|कौरवों]] से बचने के लिए एकचक्रा नामक नगरी में, छद्मवेश में एक ब्राह्मण के घर रहने लगे। वे लोग भिक्षा मांगकर अपना निर्वाह करते थे। उस नगरी के पास बक नामक एक असुर रहता था। एकचक्रा नगरी का शासक दुर्बल था, अत: वहां बकासुर का आतंक छा गया था। बकासुर शत्रुओं तथा हिंसक प्राणियों से नगरी की सुरक्षा करता था। तथा फलस्वरूप नगरवासियों ने यह नियत कर दिया था कि वहां के निवासी गृहस्थ बारी-बारी से उसके एक दिन के भोजन का प्रबंध करेंगे। बकासुर नरभक्षी था। उसको प्रतिदिन बीस खारी अगहनी के चावल, दो भैंसे तथा एक मनुष्य को आवश्यकता होती थी। उस दिन पांडवों के आश्रयदाता ब्राह्मण की बारी थी। उसके परिवार में पति-पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री थे। वे लोग निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि किसको बकासुर के पास भेजा जाय। कुंती की प्रेरणा से ब्राह्मण के स्थान पर खाद्य सामग्री लेकर [[भीम (पांडव)|भीम]]सेन बकासुर के पास गया। पहले तो वह बक को चिढ़ाकर उसके लिए आयी हुई खाद्य सामग्री खाता रहा, फिर उससे द्वंद्व युद्ध कर भीम ने उसे मार डाला। भीमसेन ने उसके परिवारजनों से कहा कि वे लोग नर-मांस का परित्याग कर देंगे तो भीम उनको नहीं मारेगा। उन्होंने स्वीकार कर लिया। पांडवों ने उस ब्राह्मण से प्रतिज्ञा ले ली कि वह किसी पर यह प्रकट नहीं होने देगा कि बकासुर को भीमसेन ने मारा है। <ref>महाभारत, [[आदि पर्व महाभारत|आदिपर्व]], अध्याय 156 से 163 तक</ref>
 
*बालसखाओं के साथ [[बलराम]] और [[कृष्ण]] जलाशय के तट पर पहुंचे। तट पर पर्वतवत एक बड़ा बगुला बैठा था। वह [[कंस]] का मित्र था। उसने कृष्ण को निगल लिया। उसके तालू में कृष्ण ने ऐसी जलन उत्पन्न की कि उसने तुरंत उसे उगल भी दिया। फिर चोंच से कठिन प्रहार करना ही चाहता था कि कृष्ण ने चोंच पकड़कर उसे चीर डाला। उसका संसार से उद्धार हो गया। वह बक नामक असुर था जो बगुले का रूप धर कर वहां गया था। <ref>श्रीमद् भागवत, 10 । 11। 45-59</ref>
 
*बालसखाओं के साथ [[बलराम]] और [[कृष्ण]] जलाशय के तट पर पहुंचे। तट पर पर्वतवत एक बड़ा बगुला बैठा था। वह [[कंस]] का मित्र था। उसने कृष्ण को निगल लिया। उसके तालू में कृष्ण ने ऐसी जलन उत्पन्न की कि उसने तुरंत उसे उगल भी दिया। फिर चोंच से कठिन प्रहार करना ही चाहता था कि कृष्ण ने चोंच पकड़कर उसे चीर डाला। उसका संसार से उद्धार हो गया। वह बक नामक असुर था जो बगुले का रूप धर कर वहां गया था। <ref>श्रीमद् भागवत, 10 । 11। 45-59</ref>
  

Revision as of 07:09, 2 September 2010

  • paanchoan paandav tatha kuanti kauravoan se bachane ke lie ekachakra namak nagari mean, chhadmavesh mean ek brahman ke ghar rahane lage. ve log bhiksha maangakar apana nirvah karate the. us nagari ke pas bak namak ek asur rahata tha. ekachakra nagari ka shasak durbal tha, at: vahaan bakasur ka atank chha gaya tha. bakasur shatruoan tatha hiansak praniyoan se nagari ki suraksha karata tha. tatha phalasvaroop nagaravasiyoan ne yah niyat kar diya tha ki vahaan ke nivasi grihasth bari-bari se usake ek din ke bhojan ka prabandh kareange. bakasur narabhakshi tha. usako pratidin bis khari agahani ke chaval, do bhaianse tatha ek manushy ko avashyakata hoti thi. us din paandavoan ke ashrayadata brahman ki bari thi. usake parivar mean pati-patni, ek putr tatha ek putri the. ve log nishchay nahian kar pa rahe the ki kisako bakasur ke pas bheja jay. kuanti ki prerana se brahman ke sthan par khady samagri lekar bhimsen bakasur ke pas gaya. pahale to vah bak ko chidhakar usake lie ayi huee khady samagri khata raha, phir usase dvandv yuddh kar bhim ne use mar dala. bhimasen ne usake parivarajanoan se kaha ki ve log nar-maans ka parityag kar deange to bhim unako nahian marega. unhoanne svikar kar liya. paandavoan ne us brahman se pratijna le li ki vah kisi par yah prakat nahian hone dega ki bakasur ko bhimasen ne mara hai. [1]
  • balasakhaoan ke sath balaram aur krishna jalashay ke tat par pahuanche. tat par parvatavat ek b da bagula baitha tha. vah kans ka mitr tha. usane krishna ko nigal liya. usake taloo mean krishna ne aisi jalan utpann ki ki usane turant use ugal bhi diya. phir choanch se kathin prahar karana hi chahata tha ki krishna ne choanch pak dakar use chir dala. usaka sansar se uddhar ho gaya. vah bak namak asur tha jo bagule ka roop dhar kar vahaan gaya tha. [2]

tika tippani aur sandarbh

  1. mahabharat, adiparv, adhyay 156 se 163 tak
  2. shrimadh bhagavat, 10 . 11. 45-59

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