ख़ानजहाँ लोदी: Difference between revisions

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'''ख़ानजहाँ''' उर्फ़ 'पीर ख़ाँ' एक [[अफ़ग़ान]] सरदार था, जो बादशाह [[शाहजहाँ]] के गद्दी पर बैठने के समय दक्कन का सूबेदार था। शाहजहाँ के समय में उसे [[मालवा]] की सूबेदारी मिली थी। ख़ानजहाँ ने दावर बख़्श के बादशाह बनाये जाने का समर्थन किया था, परंतु शाहजहाँ ने गद्दी पर बैठने पर उसे क्षमा कर दिया और दक्कन के सूबेदार पद पर बने रहने दिया। किंतु विद्रोही हो जाने के कारण 1631 ई. में उसकी हत्या कर दी गई।
'''ख़ानजहाँ''' उर्फ़ 'पीर ख़ाँ' एक [[अफ़ग़ान]] सरदार था, जो बादशाह [[शाहजहाँ]] के गद्दी पर बैठने के समय दक्कन का [[सूबेदार]] था। शाहजहाँ के समय में उसे [[मालवा]] की सूबेदारी मिली थी। ख़ानजहाँ ने दावर बख़्श के बादशाह बनाये जाने का समर्थन किया था, परंतु शाहजहाँ ने गद्दी पर बैठने पर उसे क्षमा कर दिया और दक्कन के सूबेदार पद पर बने रहने दिया। किंतु विद्रोही हो जाने के कारण 1631 ई. में उसकी हत्या कर दी गई।


*जब ख़ानजहाँ बादशाह के हुक्म से [[बालाघाट]] को फिर से नहीं जीत सका, जिसे उसने निज़ामशाह के हाथ बेच दिया था, तो उसे [[दिल्ली]] वापस बुला लिया गया।
*जब ख़ानजहाँ बादशाह के हुक्म से [[बालाघाट]] को फिर से नहीं जीत सका, जिसे उसने निज़ामशाह के हाथ बेच दिया था, तो उसे [[दिल्ली]] वापस बुला लिया गया।

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ख़ानजहाँ उर्फ़ 'पीर ख़ाँ' एक अफ़ग़ान सरदार था, जो बादशाह शाहजहाँ के गद्दी पर बैठने के समय दक्कन का सूबेदार था। शाहजहाँ के समय में उसे मालवा की सूबेदारी मिली थी। ख़ानजहाँ ने दावर बख़्श के बादशाह बनाये जाने का समर्थन किया था, परंतु शाहजहाँ ने गद्दी पर बैठने पर उसे क्षमा कर दिया और दक्कन के सूबेदार पद पर बने रहने दिया। किंतु विद्रोही हो जाने के कारण 1631 ई. में उसकी हत्या कर दी गई।

  • जब ख़ानजहाँ बादशाह के हुक्म से बालाघाट को फिर से नहीं जीत सका, जिसे उसने निज़ामशाह के हाथ बेच दिया था, तो उसे दिल्ली वापस बुला लिया गया।
  • 1629 ई. में मुग़ल दरबार में सम्मान न मिलने के कारण उसने स्वयं को असुरक्षित महसूस किया।
  • इस कारण ख़ानजहाँ अहमदनगर के शासक मुर्तज़ा निज़ामशाह के दरबार में पहुँचा।
  • निज़ामशाह ने उसे बीदर की जागीरदारी इस शर्त पर प्रदान की कि वह मुग़लों के क़ब्ज़े से अहमदनगर के क्षेत्र को वापस कर दे।
  • 1629 ई. में शाहजहाँ के दक्षिण पहुँच जाने पर ख़ानजहाँ को दक्षिण में कोई सहायता न मिल सकी।
  • अतः निराश होकर ख़ानजहाँ को उत्तर-पश्चिम की ओर भागना पड़ा।
  • इस समय अंतराल में भी शाही फ़ौज लगातार उसका पीछा करती रही।
  • अन्त में बांदा ज़िले के सिंहोदा नामक स्थान पर माधोसिंह द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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