गीता 3:1: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 9: | Line 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
'बुद्धि' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' मान लेने से < | 'बुद्धि' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' मान लेने से [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को भ्रम हो गया, भगवान् के वचनों में 'कर्म' की अपेक्षा 'ज्ञान' की प्रशंसा प्रतीत होने लगी, एवं वे वचन उनको स्पष्ट न दिखायी देकर मिले हुए से जान पड़ने लगे। अतएव भगवान् से उनका स्पष्टीकरण करवाने की और अपने लिये निश्चित श्रेय:साधन जानने की इच्छा से अर्जुन पूछते हैं- | ||
इस अध्याय में नाना प्रकार के हेतुओं से विहित कर्मो की अवश्य-कर्तव्यता सिद्ध की गयी है तथा प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने वर्ण आश्रम के लिये विहित कर्म किस प्रकार करने चाहिये, क्यों करने चाहिये, उनके न करने में क्या हानि है, करने में क्या लाभ है, कौन-से कर्म बन्धनकारक हैं और कौन से मुक्ति में सहायक हैं- इत्यादि बातें भलीभाँति समझायी गयी हैं। इस प्रकार इस अध्याय में कर्मयोग का विषय अन्यान्य अध्यायों की अपेक्षा अधिक और विस्तारपूर्वक वर्णित है एवं दूसरे विषयों का समावेश बहुत ही कम हुआ है, जो कुछ हुआ है, वह भी बहुत ही संक्षेप में हुआ है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'कर्मयोग' रखा गया है । | |||
इस अध्याय में नाना प्रकार के हेतुओं से विहित कर्मो की अवश्य-कर्तव्यता सिद्ध की गयी है तथा प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने वर्ण आश्रम के लिये विहित कर्म किस प्रकार करने चाहिये, क्यों करने चाहिये, उनके न करने में क्या हानि है, करने में क्या लाभ है, कौन-से कर्म बन्धनकारक हैं और कौन से मुक्ति में सहायक हैं- इत्यादि बातें भलीभाँति समझायी गयी | |||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
Line 26: | Line 24: | ||
'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
---- | ---- | ||
हे < | हे जनार्दन<ref>मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव<ref>मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।</ref> ! मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं ? ।।1।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
Line 62: | Line 60: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
Latest revision as of 09:33, 4 January 2013
गीता अध्याय-3 श्लोक-1 / Gita Chapter-3 Verse-1
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
||||