गीता 3:7: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
No edit summary
 
(4 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 9: Line 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
अर्जुन ने जो पूछा था कि आप मुझे घोर कर्म में क्यों लगाते हैं, उसके उत्तर में ऊपर से कर्मों का त्याग करने वाले मिथ्याचारी की निन्दा और कर्मयोगी की प्रशंसा करके अब उन्हें कर्म करने के लिये आज्ञा देते हैं-
[[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ने जो पूछा था कि आप मुझे घोर कर्म में क्यों लगाते हैं, उसके उत्तर में ऊपर से कर्मों का त्याग करने वाले मिथ्याचारी की निन्दा और कर्मयोगी की प्रशंसा करके अब उन्हें कर्म करने के लिये आज्ञा देते हैं-
----
----
<div align="center">
<div align="center">
Line 22: Line 21:
|-
|-
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
किंतु हे <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
किंतु हे [[अर्जुन]] ! जो पुरुष मन से [[इन्द्रियाँ]] को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है ।।7।।  
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! जो पुरुष मन से [[इन्द्रियों]] को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है ।।7।।  


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Line 57: Line 55:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Latest revision as of 09:49, 4 January 2013

गीता अध्याय-3 श्लोक-7 / Gita Chapter-3 Verse-7

प्रसंग-


अर्जुन[1] ने जो पूछा था कि आप मुझे घोर कर्म में क्यों लगाते हैं, उसके उत्तर में ऊपर से कर्मों का त्याग करने वाले मिथ्याचारी की निन्दा और कर्मयोगी की प्रशंसा करके अब उन्हें कर्म करने के लिये आज्ञा देते हैं-


यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन ।
कर्मेन्द्रियै: कर्मयोगमसक्त: स विशिष्यते ।।7।।



किंतु हे अर्जुन ! जो पुरुष मन से इन्द्रियाँ को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है ।।7।।

On the other hand, he who controlling the organs of sense and action by the power of his will, and remaining unattached, undertakes the yoga of action through those organs, Arjuna, he excels.(7)


तु = और ; अर्जुन = हे अर्जुन ; य: = जो (पुरुष) ; मनसा = मनसे ; इन्द्रियाणि = इन्द्रियोंको ; नियम्य = वशमें करके ; असक्त: = अनासक्त हुआ ; कर्मेन्द्रियै: = कर्मेन्द्रियोंसे ; कर्मयोगम् = कर्मयोगका ; आरभते = आचरण करता है ; स: = वह ; विशिष्यते = श्रेष्ठ है ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख