गीता 3:19: Difference between revisions

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इसलिये तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य कर्म को भलीभाँति करता रह । क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है. ।।19।।
इसलिये तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य कर्म को भलीभाँति करता रह। क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है. ।।19।।


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तस्मात् = इससे (तूं) ; असक्त: = अनासक्त हुआ ; सततम् = निरन्तर ; कार्यम् = कर्तव्य ; कर्म = कर्मका ; समाचर = अच्छी प्रकार आचरण कर ; हि = क्योंकि ; असक्त: = अनासक्त ; पूरूष: = पुरुष ; कर्म = कर्म ; आचरन् = करता हुआ ; परम् = परमात्माको ; आप्रोति = प्राप्त होता है ;  
तस्मात् = इससे (तूं) ; असक्त: = अनासक्त हुआ ; सततम् = निरन्तर ; कार्यम् = कर्तव्य ; कर्म = कर्मका ; समाचर = अच्छी प्रकार आचरण कर ; हि = क्योंकि ; असक्त: = अनासक्त ; पूरुष: = पुरुष ; कर्म = कर्म ; आचरन् = करता हुआ ; परम् = परमात्माको ; आप्रोति = प्राप्त होता है ;  
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Latest revision as of 10:19, 4 January 2013

गीता अध्याय-3 श्लोक-19 / Gita Chapter-3 Verse-19

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में भगवान् ने जो यह बात कही कि आसक्ति से रहित होकर कर्म करने वाला मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है, उस बात को पुष्ट करने के लिये जनकादि का प्रमाण देकर पुन: अर्जुन[1] के लिये कर्म करना उचित बतलाते हैं-


तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचार ।
असक्तो ह्राचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुष: ।।19।।



इसलिये तू निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य कर्म को भलीभाँति करता रह। क्योंकि आसक्ति से रहित होकर कर्म करता हुआ मनुष्य परमात्मा को प्राप्त हो जाता है. ।।19।।

Therefore, go on efficiently doing your duty without attachment. doing work without attachment man attains the supreme(19)


तस्मात् = इससे (तूं) ; असक्त: = अनासक्त हुआ ; सततम् = निरन्तर ; कार्यम् = कर्तव्य ; कर्म = कर्मका ; समाचर = अच्छी प्रकार आचरण कर ; हि = क्योंकि ; असक्त: = अनासक्त ; पूरुष: = पुरुष ; कर्म = कर्म ; आचरन् = करता हुआ ; परम् = परमात्माको ; आप्रोति = प्राप्त होता है ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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