गीता 3:31: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
 
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 56: Line 55:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Latest revision as of 10:42, 4 January 2013

गीता अध्याय-3 श्लोक-31 / Gita Chapter-3 Verse-31

प्रसंग-


इस प्रकार भगवान् अपने उपर्युक्त मत का अनुष्ठान करने का फल बतलाकर अब उसके अनुसार न चलने में हानि बतलाते हैं-


ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवा: ।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभि: ।।31।।



जो कोई मनुष्य दोष दृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं ।।31।।

Even those men who, with an uncavilling and devout mind, always follow this teaching of Mine are released from the bondage of all actions.(31)


ये = जो कोई; अपि = भी; मानवा: = मनुष्य; अनसूयन्त: = दोषबुद्धि से रहित; श्रद्वावन्त: = श्रद्वा से युक्त हुए; नित्यम् = सदा (ही); मे = मेरे; इदम् = इस; मतम् = मत के; अनुतिष्ठन्ति = अनुसार बर्तते हैं; ते = वे पुरुष; कर्मभि: = संपूर्ण कर्मों से; मुच्यन्ते = छूट जाते हैं



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख