गीता 3:36: Difference between revisions

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इस प्रकार [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> के पूछने पर भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> कहने लगे-
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'''अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित: ।।36।।'''
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हे [[कृष्ण]] ! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात्कार से लगाये हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है ? ।।36।।


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वार्ष्णेंय = हे कृष्ण; अथ = फिर; अयम् = यह; पूरूष: = पुरुष; बलात् = बलात्कार से; नियोजित: = लगाये हुए के; इव = सदृश; अनिच्छन् =न चाहता हुआ; अपि = भी; केन = किससे; प्रयुक्त: = प्रेरा हुआ; पापम् = पापका; चरति = आचरण करता है।
वार्ष्णेंय = हे कृष्ण; अथ = फिर; अयम् = यह; पूरुष: = पुरुष; बलात् = बलात्कार से; नियोजित: = लगाये हुए के; इव = सदृश; अनिच्छन् =न चाहता हुआ; अपि = भी; केन = किससे; प्रयुक्त: = प्रेरा हुआ; पापम् = पापका; चरति = आचरण करता है।
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Latest revision as of 10:48, 4 January 2013

गीता अध्याय-3 श्लोक-36 / Gita Chapter-3 Verse-36

प्रसंग-


इस प्रकार अर्जुन[1] के पूछने पर भगवान् श्रीकृष्ण[2] कहने लगे-


अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुष: ।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित: ।।36।।



अर्जुन बोले-


हे कृष्ण ! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात्कार से लगाये हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है ? ।।36।।

Arjuna said:


Now impelled by what, Krishna, does this man commit sin even involuntarily, as though driven by force?(36)


वार्ष्णेंय = हे कृष्ण; अथ = फिर; अयम् = यह; पूरुष: = पुरुष; बलात् = बलात्कार से; नियोजित: = लगाये हुए के; इव = सदृश; अनिच्छन् =न चाहता हुआ; अपि = भी; केन = किससे; प्रयुक्त: = प्रेरा हुआ; पापम् = पापका; चरति = आचरण करता है।



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

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