गीता 12:13-14: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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उपर्युक्त श्लोकों में भगवान् की प्राप्ति के लिये भक्ति के अंगभूत अलग-अलग साधन बतलाकर उनका फल परमेश्वर की प्राप्ति बतलाया गया, अतएव भगवान् को प्राप्त हुए प्रेमी भक्तो के लक्षण जानने की इच्छा होने पर अब सात श्लोकों में भगवत्प्राप्त ज्ञानी भक्तों के लक्षण बतलाये जाते हैं | उपर्युक्त [[श्लोक|श्लोकों]] में भगवान् की प्राप्ति के लिये [[भक्ति]] के अंगभूत अलग-अलग साधन बतलाकर उनका फल परमेश्वर की प्राप्ति बतलाया गया, अतएव भगवान् को प्राप्त हुए प्रेमी भक्तो के लक्षण जानने की इच्छा होने पर अब सात श्लोकों में भगवत्प्राप्त ज्ञानी [[भक्त|भक्तों]] के लक्षण बतलाये जाते हैं | ||
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'''अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: | '''अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च ।'''<br/> | ||
'''निर्ममो निरहंकार: समदु:खसुख: क्षमी ।।13।।'''<br/> | '''निर्ममो निरहंकार: समदु:खसुख: क्षमी ।।13।।'''<br/> | ||
'''संतुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय: ।'''<br/> | '''संतुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चय: ।'''<br/> | ||
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जो पुरुष सब भूतों में द्वेषभाव से रहित, स्वार्थरहित, सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालु है तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख-दुखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् है अर्थात् उपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है; तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है, मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये हुए है और मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है- वह मुझमें अर्पण किये हुए मन-बुद्धि निश्चय वाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है ।।13-14।। | जो पुरुष सब भूतों में द्वेषभाव से रहित, स्वार्थरहित, सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालु है तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख-दुखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् है अर्थात् उपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है; तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है, मन-[[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] सहित शरीर को वश में किये हुए है और मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है- वह मुझमें अर्पण किये हुए मन-बुद्धि निश्चय वाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है ।।13-14।। | ||
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सर्वभूतानाम् = सब भूतोंमें; अद्वेष्टा = द्वेषभावसे रहित(एवं); मैत्र: = स्वार्थरहित सबका प्रेमी; च = और; | सर्वभूतानाम् = सब भूतोंमें; अद्वेष्टा = द्वेषभावसे रहित(एवं); मैत्र: = स्वार्थरहित सबका प्रेमी; च = और; करुण: = हेतुरहित दयालु है(तथा); निर्मम: = ममता से रहित(एवं); निरहंकार: = अहंकारसे रहित; समदु:खसुख: = सुख दु:खोंकी प्राप्ति में सम(और); क्षमी = क्षमावान् है अर्थात् अपराध करनेवाले को भी अभय देनेवाला है; य: = जो; योगी = ध्यानयोग में युक्त हुआ; सततम् = निरन्तर; संतुष्ट: = लाभ हानि में संतुष्ट है(तथा); यतात्मा = मन और इन्द्रियोंसहित शरीर को वश में किये हुए; दृढनिश्चय: = मेरे में दृढ़ निश्चयवाला है; स: = वह; मयि = मेरेमें; अर्पितमनोबुद्धि = अर्पण किये हुए मन बुद्धिवाला; मभ्दक्तय = मेरा भक्त; प्रिय: = प्रिय है | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 09:01, 6 January 2013
गीता अध्याय-12 श्लोक-13, 14 / Gita Chapter-12 Verse-13, 14
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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