गीता 18:34: Difference between revisions

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हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">पृथापुत्र</balloon> ! फल की इच्छा वाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा अत्यन्त आसक्ति से धर्म, अर्थ और कामों को धारण करता है, वह धारणशक्ति राजसी है ॥34॥  
हे पृथापुत्र<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! फल की इच्छा वाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा अत्यन्त आसक्ति से [[धर्म]], अर्थ और कामों को धारण करता है, वह धारणशक्ति राजसी है ॥34॥  


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Latest revision as of 05:53, 7 January 2013

गीता अध्याय-18 श्लोक-34 / Gita Chapter-18 Verse-34

प्रसंग


अब राजसी धृति के लक्षण बतलाते हैं


यया तु धर्मकामार्थान्धृत्या धारयतेऽर्जुन।
प्रसंगेन फलाकाङ्क्षी धृति:सा पार्थ राजसी॥ 34।।



हे पृथापुत्र[1] ! फल की इच्छा वाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा अत्यन्त आसक्ति से धर्म, अर्थ और कामों को धारण करता है, वह धारणशक्ति राजसी है ॥34॥

And that determination by which one holds fast to fruitive result in religion, economic development and sense gratification is of the nature of passion, O Arjuna.


तु =और ; पार्थ = हे पृथापुत्र ; अर्जुन = अर्जुन ; फलाकाक्ष्डी = फलकी इच्छावाला मनुष्य ;प्रसगेंन = अति आसक्तिसे ; यया = जिस ; धृत्या = धारणा के द्वारा धर्मकामार्थान् = धर्म अर्थ और कामों को ; धारयते = धारण करता है ; सा = वह ; धृति: = धारणा ; राजसी = राजसी है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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