गीता 5:6: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 12: | Line 11: | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
''' | '''सन्न्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: ।'''<br/> | ||
'''योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्रा नचिरेणाधिगच्छति ।।6।।''' | '''योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्रा नचिरेणाधिगच्छति ।।6।।''' | ||
</div> | </div> | ||
Line 23: | Line 22: | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
परंतु हे < | परंतु हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! कर्मयोग के बिना सन्न्यास अर्थात् मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाला सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग, प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्मयोगी परब्रह्रा परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ।।6।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
Line 35: | Line 33: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
तु = परन्तु; महाबाहो = हे अर्जुन; अयोगत: = निष्काम कर्म योग के बिना; | तु = परन्तु; महाबाहो = हे अर्जुन; अयोगत: = निष्काम कर्म योग के बिना; सन्न्यास: = सन्न्यास अर्थात् मन इन्द्रियों और शरीर द्वारा होने वाले संपूर्ण कर्मों में कर्तापनका त्याग; आप्तुम् = प्राप्त होना; दु:खम् = कठिन है (और); मुनि: = स्वरूप को मनन करने वाला; योगयुक्त: = निष्काम कर्मयोगी; ब्रह्म = परब्रह्म परमात्मा को; नचिरेण = शीघ्र ही; अधिगच्छति = प्रापत हो जाता है। | ||
|- | |- | ||
|} | |} | ||
Line 59: | Line 57: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
Latest revision as of 13:52, 2 May 2015
गीता अध्याय-5 श्लोक-6 / Gita Chapter-5 Verse-6
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
||||