श्रावस्ती में उत्खनन कार्य: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('[[जेतवन विहार के अवशेष, श्रावस्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
{{श्रावस्ती विषय सूची}} | |||
{{सूचना बक्सा पर्यटन | |||
|चित्र=Jain-Temple-Sravasti.jpg | |||
|चित्र का नाम=प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष, श्रावस्ती | |||
|विवरण='''श्रावस्ती''' [[उत्तर प्रदेश]] के प्रसिद्ध ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] एवं [[जैन धर्म|जैन]] तीर्थ स्थानों के लिए श्रावस्ती प्रसिद्ध है। यहाँ के [[उत्खनन]] से [[पुरातत्त्व]] महत्त्व की कई वस्तुएँ मिली हैं। | |||
|केन्द्र शासित प्रदेश= | |||
|ज़िला=[[श्रावस्ती ज़िला|श्रावस्ती]] | |||
|निर्माता= | |||
|स्वामित्व= | |||
|प्रबंधक= | |||
|निर्माण काल=प्राचीन काल से ही [[रामायण]], [[महाभारत]] तथा जैन, बौद्ध साहित्य आदि में अनेक उल्लेख। | |||
|स्थापना= | |||
|भौगोलिक स्थिति= | |||
|मार्ग स्थिति=श्रावस्ती [[बलरामपुर]] से 17 कि.मी., [[लखनऊ]] से 176 कि.मी., [[कानपुर]] से 249 कि.मी., [[इलाहाबाद]] से 262 कि.मी., [[दिल्ली]] से 562 कि.मी. की दूरी पर है। | |||
|प्रसिद्धि=पुरावशेष, ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल। | |||
|कब जाएँ=[[अक्टूबर]] से [[मार्च]] | |||
|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है। | |||
|हवाई अड्डा=लखनऊ हवाई अड्डा | |||
|रेलवे स्टेशन=बलरामपुर रेलवे स्टेशन | |||
|बस अड्डा=मेगा टर्मिनस गोंडा, श्रावस्ती शहर से 50 कि.मी. की दूरी पर है | |||
|यातायात= | |||
|क्या देखें= | |||
|कहाँ ठहरें= | |||
|क्या खायें= | |||
|क्या ख़रीदें= | |||
|एस.टी.डी. कोड= | |||
|ए.टी.एम= | |||
|सावधानी= | |||
|मानचित्र लिंक= | |||
|संबंधित लेख=[[जेतवन श्रावस्ती|जेतवन]], [[शोभनाथ मन्दिर श्रावस्ती|शोभनाथ मन्दिर]], [[मूलगंध कुटी विहार]], [[कौशल महाजनपद]] आदि। | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी= | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''श्रावस्ती''' के [[प्रागैतिहासिक काल]] का कोई प्रमाण नहीं मिला है। [[शिवालिक पर्वतश्रेणी|शिवालिक पर्वत श्रृखला]] की तराई में स्थित यह क्षेत्र सधन वन व ओषधियों वनस्पतियो से आच्छादित था। [[शीशम]] के कोमल पत्तों [[कचनार]] के रक्ताभ पुष्प व सेमल के लाल प्रसून की बासंती आभा से आपूरित यह वनखंड प्राक्रतिक शोभा से परिपूर्ण रहता था। यह भूमि पहाडी नालों के जलप्रवाह की कल-कल ध्वनि व पंछियों के कलरव से निनादित वन्य-प्राणियों की उतम शरण स्थली रही है। आदिम मानव इन सुरम्य जंगलों में पुर्णतः प्राक्रतिक रूप से जीवन-यापन करता था। सभ्यता के विकास के क्रम में इस क्षेत्र में मानवी समाज विकसित हुआ। आदिम संस्कृति उत्तरोत्तर क्रमशः आर्य संस्कृति में परिवर्धित होती गयी। | '''श्रावस्ती''' के [[प्रागैतिहासिक काल]] का कोई प्रमाण नहीं मिला है। [[शिवालिक पर्वतश्रेणी|शिवालिक पर्वत श्रृखला]] की तराई में स्थित यह क्षेत्र सधन वन व ओषधियों वनस्पतियो से आच्छादित था। [[शीशम]] के कोमल पत्तों [[कचनार]] के रक्ताभ पुष्प व सेमल के लाल प्रसून की बासंती आभा से आपूरित यह वनखंड प्राक्रतिक शोभा से परिपूर्ण रहता था। यह भूमि पहाडी नालों के जलप्रवाह की कल-कल ध्वनि व पंछियों के कलरव से निनादित वन्य-प्राणियों की उतम शरण स्थली रही है। आदिम मानव इन सुरम्य जंगलों में पुर्णतः प्राक्रतिक रूप से जीवन-यापन करता था। सभ्यता के विकास के क्रम में इस क्षेत्र में मानवी समाज विकसित हुआ। आदिम संस्कृति उत्तरोत्तर क्रमशः आर्य संस्कृति में परिवर्धित होती गयी। | ||
==उत्खनन कार्य== | ==उत्खनन कार्य== | ||
श्रावस्ती के प्राचीन इतिहास को प्रकाश में लाने के लिए प्रथम प्रयास [[कनिंघम|जनरल कनिंघम]] ने किया। उन्होंने सन 1863 में उत्खनन प्रारंभ करके लगभग एक [[वर्ष]] के कार्य में जेतवन का थोड़ा भाग साफ़ कराया। इसमें उनको एक [[बोधिसत्व]] की 7 फुट 4 इंच ऊँची प्रतिमा प्राप्त हुई, जिस पर अंकित लेख से इसका श्रावस्ती विहार में स्थापित होना ज्ञात होता है। यह मूर्ति भिक्षुबल द्वारा कोसंबकुट्टी के विहार में स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा के अधिष्ठान पर अंकित लेख में [[तिथि]] नष्ट हो गई है, परंतु लिपिशास्त्र के आधार पर यह लेख [[कुषाण काल|कुषाण-काल]] का प्रतीत होता है।<ref>उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार की [[बोधिसत्त्व]] की एक और लेखयुक्त प्रतिमा [[सारनाथ]] से मिली है, जो इसी भिक्षु बल द्वारा [[कनिष्क]] के राज्यकाल के तृतीय वर्ष में स्थापित की गई थी। अत: यह प्रतिमा प्रारंभिक [[कुषाण काल|कुषाणकाल]] की प्रतीत होती है। ब्लाक, जर्नल ऑफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल, भाग 67 (1898), प्लेट 1, पृष्ठ 274 और आगे (प्लेट के साथ)। एपिग्राफिया इंडिका, भाग 8 (1905-06), पृष्ठ 179 और आगे (प्लेट के साथ)।</ref> [[कनिंघम]] ने इस आधार पर 'सहेत के क्षेत्र को जेतवन' और 'महेत के क्षेत्र को [[श्रावस्ती]]' से समीकृत किया था।<ref>ए. कनिंघम, आर्कियोलाजिकल सर्वे रिपोटर्स भाग 1, पृष्ठ 377 और आगे।</ref> | श्रावस्ती के प्राचीन इतिहास को प्रकाश में लाने के लिए प्रथम प्रयास [[कनिंघम|जनरल कनिंघम]] ने किया। उन्होंने सन 1863 में उत्खनन प्रारंभ करके लगभग एक [[वर्ष]] के कार्य में जेतवन का थोड़ा भाग साफ़ कराया। इसमें उनको एक [[बोधिसत्व]] की 7 फुट 4 इंच ऊँची प्रतिमा प्राप्त हुई, जिस पर अंकित लेख से इसका श्रावस्ती विहार में स्थापित होना ज्ञात होता है। यह मूर्ति भिक्षुबल द्वारा कोसंबकुट्टी के विहार में स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा के अधिष्ठान पर अंकित लेख में [[तिथि]] नष्ट हो गई है, परंतु लिपिशास्त्र के आधार पर यह लेख [[कुषाण काल|कुषाण-काल]] का प्रतीत होता है।<ref>उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार की [[बोधिसत्त्व]] की एक और लेखयुक्त प्रतिमा [[सारनाथ]] से मिली है, जो इसी भिक्षु बल द्वारा [[कनिष्क]] के राज्यकाल के तृतीय वर्ष में स्थापित की गई थी। अत: यह प्रतिमा प्रारंभिक [[कुषाण काल|कुषाणकाल]] की प्रतीत होती है। ब्लाक, जर्नल ऑफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल, भाग 67 (1898), प्लेट 1, पृष्ठ 274 और आगे (प्लेट के साथ)। एपिग्राफिया इंडिका, भाग 8 (1905-06), पृष्ठ 179 और आगे (प्लेट के साथ)।</ref> [[कनिंघम]] ने इस आधार पर 'सहेत के क्षेत्र को जेतवन' और 'महेत के क्षेत्र को [[श्रावस्ती]]' से समीकृत किया था।<ref>ए. कनिंघम, आर्कियोलाजिकल सर्वे रिपोटर्स भाग 1, पृष्ठ 377 और आगे।</ref> | ||
[[चित्र:Jetavana-Vihara-Sravasti.jpg|[[जेतवन विहार]] के [[अवशेष]], [[श्रावस्ती]]|left|250px|thumb]] | |||
[[कनिंघम]] के अनुकरण पर डब्ल्यू. सी. बेनेट ने पक्की कुटी टीले की कुछ खुदाई करवाई थी।<ref>बेनेट के उत्खनन के लिए द्रष्टव्य, गजेटियरऑफ़ दि प्राविंसऑफ़ अवध ([[इलाहाबाद]], 1878), पृष्ठ 286</ref> चीनी यात्रियों के यात्रा विवरणों के आधार पर इस टीले का समीकरण कनिंघम ने 'अंगुलिमाल स्तूप'<ref>पूर्ववर्ती लेखक इसे अंगुलिमालिय स्तूप कहते हैं, जबकि इसका सही प्राकृत रूप अंगुलिमाल होना चाहिए। जातक, (फाउसबोल संस्करण), भाग 5, पृष्ठ 466</ref> से किया था। सन [[1876]] ई. में कनिंघम ने इन स्थानों की खुदाई पुन: आरंभ करवाई, जिसमें 16 इमारतों की नीवें प्रकाश में आईं। इनमें अधिकांश [[स्तूप]] और परवर्ती काल के मंदिर थे।<ref>ए. कनिंघम, आर्कियोलाजिकल सर्वे रिपोटर्स, भाग 11, पृष्ठ 78</ref> इस बार उनको यहाँ से सिक्के और मृण्मूर्तियाँ भी मिलीं। [[उत्खनन]] से यह निश्चित हुआ कि जिस स्थान पर बोधिसत्व की विशाल मूर्ति मिली थी, वहाँ कोशंब-कुट्टी नामक विहार था। उसी के उत्तर में गंधकुटी अथवा मुख्य विहार था। | [[कनिंघम]] के अनुकरण पर डब्ल्यू. सी. बेनेट ने पक्की कुटी टीले की कुछ खुदाई करवाई थी।<ref>बेनेट के उत्खनन के लिए द्रष्टव्य, गजेटियरऑफ़ दि प्राविंसऑफ़ अवध ([[इलाहाबाद]], 1878), पृष्ठ 286</ref> चीनी यात्रियों के यात्रा विवरणों के आधार पर इस टीले का समीकरण कनिंघम ने 'अंगुलिमाल स्तूप'<ref>पूर्ववर्ती लेखक इसे अंगुलिमालिय स्तूप कहते हैं, जबकि इसका सही प्राकृत रूप अंगुलिमाल होना चाहिए। जातक, (फाउसबोल संस्करण), भाग 5, पृष्ठ 466</ref> से किया था। सन [[1876]] ई. में कनिंघम ने इन स्थानों की खुदाई पुन: आरंभ करवाई, जिसमें 16 इमारतों की नीवें प्रकाश में आईं। इनमें अधिकांश [[स्तूप]] और परवर्ती काल के मंदिर थे।<ref>ए. कनिंघम, आर्कियोलाजिकल सर्वे रिपोटर्स, भाग 11, पृष्ठ 78</ref> इस बार उनको यहाँ से सिक्के और मृण्मूर्तियाँ भी मिलीं। [[उत्खनन]] से यह निश्चित हुआ कि जिस स्थान पर बोधिसत्व की विशाल मूर्ति मिली थी, वहाँ कोशंब-कुट्टी नामक विहार था। उसी के उत्तर में गंधकुटी अथवा मुख्य विहार था। | ||
==डब्ल्यू. 'होवी' द्वारा उत्खनन== | ==डब्ल्यू. 'होवी' द्वारा उत्खनन== | ||
Line 28: | Line 65: | ||
{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | {{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
{{refbox}} | |||
<references/> | <references/> | ||
*ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार | *ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार | ||
Line 38: | Line 76: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}{{उत्तर प्रदेश के नगर}}{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | {{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}{{उत्तर प्रदेश के नगर}}{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के नगर]][[Category:भारत के नगर]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:बौद्ध धार्मिक स्थल]][[Category:जैन धार्मिक स्थल]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]][[Category:जैन धर्म कोश]] | [[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल]][[Category:उत्तर प्रदेश के नगर]][[Category:भारत के नगर]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:बौद्ध धार्मिक स्थल]][[Category:जैन धार्मिक स्थल]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]][[Category:जैन धर्म कोश]] | ||
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:चयनित लेख]] | [[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:चयनित लेख]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 09:49, 23 March 2017
श्रावस्ती में उत्खनन कार्य
| |
विवरण | श्रावस्ती उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। बौद्ध एवं जैन तीर्थ स्थानों के लिए श्रावस्ती प्रसिद्ध है। यहाँ के उत्खनन से पुरातत्त्व महत्त्व की कई वस्तुएँ मिली हैं। |
ज़िला | श्रावस्ती |
निर्माण काल | प्राचीन काल से ही रामायण, महाभारत तथा जैन, बौद्ध साहित्य आदि में अनेक उल्लेख। |
मार्ग स्थिति | श्रावस्ती बलरामपुर से 17 कि.मी., लखनऊ से 176 कि.मी., कानपुर से 249 कि.मी., इलाहाबाद से 262 कि.मी., दिल्ली से 562 कि.मी. की दूरी पर है। |
प्रसिद्धि | पुरावशेष, ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल। |
कब जाएँ | अक्टूबर से मार्च |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है। |
हवाई अड्डा | लखनऊ हवाई अड्डा |
रेलवे स्टेशन | बलरामपुर रेलवे स्टेशन |
बस अड्डा | मेगा टर्मिनस गोंडा, श्रावस्ती शहर से 50 कि.मी. की दूरी पर है |
संबंधित लेख | जेतवन, शोभनाथ मन्दिर, मूलगंध कुटी विहार, कौशल महाजनपद आदि।
|
श्रावस्ती के प्रागैतिहासिक काल का कोई प्रमाण नहीं मिला है। शिवालिक पर्वत श्रृखला की तराई में स्थित यह क्षेत्र सधन वन व ओषधियों वनस्पतियो से आच्छादित था। शीशम के कोमल पत्तों कचनार के रक्ताभ पुष्प व सेमल के लाल प्रसून की बासंती आभा से आपूरित यह वनखंड प्राक्रतिक शोभा से परिपूर्ण रहता था। यह भूमि पहाडी नालों के जलप्रवाह की कल-कल ध्वनि व पंछियों के कलरव से निनादित वन्य-प्राणियों की उतम शरण स्थली रही है। आदिम मानव इन सुरम्य जंगलों में पुर्णतः प्राक्रतिक रूप से जीवन-यापन करता था। सभ्यता के विकास के क्रम में इस क्षेत्र में मानवी समाज विकसित हुआ। आदिम संस्कृति उत्तरोत्तर क्रमशः आर्य संस्कृति में परिवर्धित होती गयी।
उत्खनन कार्य
श्रावस्ती के प्राचीन इतिहास को प्रकाश में लाने के लिए प्रथम प्रयास जनरल कनिंघम ने किया। उन्होंने सन 1863 में उत्खनन प्रारंभ करके लगभग एक वर्ष के कार्य में जेतवन का थोड़ा भाग साफ़ कराया। इसमें उनको एक बोधिसत्व की 7 फुट 4 इंच ऊँची प्रतिमा प्राप्त हुई, जिस पर अंकित लेख से इसका श्रावस्ती विहार में स्थापित होना ज्ञात होता है। यह मूर्ति भिक्षुबल द्वारा कोसंबकुट्टी के विहार में स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा के अधिष्ठान पर अंकित लेख में तिथि नष्ट हो गई है, परंतु लिपिशास्त्र के आधार पर यह लेख कुषाण-काल का प्रतीत होता है।[1] कनिंघम ने इस आधार पर 'सहेत के क्षेत्र को जेतवन' और 'महेत के क्षेत्र को श्रावस्ती' से समीकृत किया था।[2] [[चित्र:Jetavana-Vihara-Sravasti.jpg|जेतवन विहार के अवशेष, श्रावस्ती|left|250px|thumb]] कनिंघम के अनुकरण पर डब्ल्यू. सी. बेनेट ने पक्की कुटी टीले की कुछ खुदाई करवाई थी।[3] चीनी यात्रियों के यात्रा विवरणों के आधार पर इस टीले का समीकरण कनिंघम ने 'अंगुलिमाल स्तूप'[4] से किया था। सन 1876 ई. में कनिंघम ने इन स्थानों की खुदाई पुन: आरंभ करवाई, जिसमें 16 इमारतों की नीवें प्रकाश में आईं। इनमें अधिकांश स्तूप और परवर्ती काल के मंदिर थे।[5] इस बार उनको यहाँ से सिक्के और मृण्मूर्तियाँ भी मिलीं। उत्खनन से यह निश्चित हुआ कि जिस स्थान पर बोधिसत्व की विशाल मूर्ति मिली थी, वहाँ कोशंब-कुट्टी नामक विहार था। उसी के उत्तर में गंधकुटी अथवा मुख्य विहार था।
डब्ल्यू. 'होवी' द्वारा उत्खनन
कनिंघम के सहेत में उत्खनन के समय (1875-76) डब्ल्यू. होवी ने महेत में खुदाई की। इसमें उन्हें महेत के पश्चिम में स्थित शोभनाथ जैन मंदिर के खंडहरों में कुछ मूर्तियाँ मिली।[6] श्री होवी ने इस क्षेत्र का गहन अन्वेषण 15 दिसम्बर 1884 से 15 मई 1885 तक किया तथा इसे क्षेत्र में बड़ी संख्या में स्मारकों का पता लगाया। अपनी रिपोर्ट में[7] होवी ने कुछ स्मारकों का समीकरण चीनी यात्रियों द्वारा वर्णित स्मारकों से करने का प्रयास किया, पंरतु अधिकांश स्मारकों के विषय में प्रर्याप्त प्रमाण का अभाव है। होवी द्वारा उत्खनित वस्तुओं में कुछ निम्नलिखित हैं[8]-
- संवत् 1176 (1119 ई.) का एक शिलालेख।[9]
- गुप्तलिपि में अभिलिखित एक लाल रंग का बलुए पत्थर का टुकड़ा।
- जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों पर अंकित दो अभिलेखों के छ: टुकड़े।
- एक प्राचीन दवात।
- एक अग्निमुख नाग की काँसे की प्रतिमा
- कच्ची मिट्टी की दस मुहरें। ये सभी बौद्ध धर्म संबंधित हैं।
- कच्ची मिट्टी की 500 मुहरें।
- कर्नेकी (संभवत: कनिष्क) की एक तांबे की मुद्रा।
thumb|250px|left|जेतवन, श्रावस्ती
जे.पी.एच. फोगल तथा दयाराम साहनी का उत्खनन
होवी के उत्खनन के 23 वर्ष उपरांत फरवरी-अप्रैल 1908 ई. में जे.पी.एच. फोगल तथा दयाराम साहनी ने उत्खनन किया। फोगल ने महेत के प्राचीर की दीवारों और उसके प्रवेश-द्वारों की खोज की तथा उसके विस्तार को निरूपित किया। महेत के प्रमुख टीलों में उन्होंने पक्की कुटी, कच्ची कुटी और शोभनाथ मंदिर की खोज की। कच्ची कुटी में विशेष रूप से मिट्टी की मूर्तियाँ, खिलौने आदि मिले, जिनका कलात्मक एवं ऐतिहासिक दोनों महत्व है। शोभनाथ मंदिर से अनेक जैन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुईं। सहेत के क्षेत्र से भी अनेक विहारों, स्तूपों और मंदिरों की रूपरेखा स्पष्ट की गई और बुद्ध तथा बोधिसत्व की मूर्तियाँ, सिक्के, मृण्मूर्तियाँ व मुहरें निकाली गईं।[10] इन वस्तुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण कन्नौज के राजा गोविदचंद्र का एक दानपत्र है। इसी लेख के आधार पर विद्वानों ने सहेत को जेतवन से और महेत को श्रावस्ती से समीकृत किया है।
सन 1910-1911 ई. में विख्यात पुरातत्त्ववेत्ता सर जान मार्शल की अध्यक्षता में दयाराम साहनी ने इस क्षेत्र की पुन: खुदाई की। इनका मुख्य कार्यस्थल जेतवन टीला था। उस उत्खनन में कुछ अभिलेख, मूर्तियाँ, बड़ी मात्रा में मुद्राएँ तथा लेखयुक्त मुहरें, साँचे, मृण्मूर्तियाँ, मृण्भांड और ईंटें आदि मिली हैं।[11] यद्यपि कनिंघम और होवी के उत्खननों में महेत और श्रावस्ती के समीकरण में कोई संदेह नहीं रह जाता फिर भी विंसेंट स्मिथ ने 1898 में एक लेख प्रकाशित करके कनिंघम के इस समीकरण पर आपत्ति प्रस्तुत की।[12] स्मिथ के तर्क का अनुमान चीनी यात्रियों के यात्रा-विवरणों पर आधारित था। उन्होंने श्रावस्ती को नेपाल की तराई में बालापुर, कामदी और इंतावा गाँवों के मध्य में स्थित बतलाया है।[13]
स्मिथ का परवर्ती लेख
स्मिथ ने अपने एक परवर्ती लेख में बोधिसत्व के प्राप्ति-स्थान के संदर्भ में आपत्ति की जिस पर कनिंघम का सिद्धांत आधारित था। स्मिथ का यह अनुमान तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता, क्योंकि पर्याप्त साहित्यिक और पुरातात्त्विक प्रमाणों ने श्रावस्ती का सहेत-महेत से समीकरण प्रमाणित कर दिया है। अधिक संभव है कि स्मिथ द्वारा अन्वेषित बालापुर के भग्नावशेष सेतव्य के हों। साहित्यक प्रमाणों से भी इस बात की पुष्टि होती है। पालि साहित्य[14] में सेतव्य को श्रावस्ती और राजगृह के मार्ग के बीच में स्थित कहा गया है। इस प्रकार सेतव्य, संभवत: श्रावस्ती और कपिलवस्तु के बीच कहीं स्थित रही होगी। अत: स्मिथ का यह कथन कि सेतव्या ही श्रावस्ती थी, उचित नहीं प्रतीत होता।
left|30px|link=ह्वेन त्सांग द्वारा श्रावस्ती का वर्णन|पीछे जाएँ | श्रावस्ती में उत्खनन कार्य | right|30px|link=सहेत का उत्खनन|आगे जाएँ |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार की बोधिसत्त्व की एक और लेखयुक्त प्रतिमा सारनाथ से मिली है, जो इसी भिक्षु बल द्वारा कनिष्क के राज्यकाल के तृतीय वर्ष में स्थापित की गई थी। अत: यह प्रतिमा प्रारंभिक कुषाणकाल की प्रतीत होती है। ब्लाक, जर्नल ऑफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल, भाग 67 (1898), प्लेट 1, पृष्ठ 274 और आगे (प्लेट के साथ)। एपिग्राफिया इंडिका, भाग 8 (1905-06), पृष्ठ 179 और आगे (प्लेट के साथ)।
- ↑ ए. कनिंघम, आर्कियोलाजिकल सर्वे रिपोटर्स भाग 1, पृष्ठ 377 और आगे।
- ↑ बेनेट के उत्खनन के लिए द्रष्टव्य, गजेटियरऑफ़ दि प्राविंसऑफ़ अवध (इलाहाबाद, 1878), पृष्ठ 286
- ↑ पूर्ववर्ती लेखक इसे अंगुलिमालिय स्तूप कहते हैं, जबकि इसका सही प्राकृत रूप अंगुलिमाल होना चाहिए। जातक, (फाउसबोल संस्करण), भाग 5, पृष्ठ 466
- ↑ ए. कनिंघम, आर्कियोलाजिकल सर्वे रिपोटर्स, भाग 11, पृष्ठ 78
- ↑ आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, (वार्षिक रिपोर्ट), 1907-08, पृष्ठ 83
- ↑ जर्नल ऑफ़ एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल (1892), प्लेट 1, अतिरिक्त संख्या (भाग 61
- ↑ आर्कियोलाजिकल सर्वेऑफ़ इंडिया, (वार्षिक रिपोर्ट), 1907-8, पृष्ठ 131-132
- ↑ इस शिलालेख पर 18 पंक्तियों में देवनागरी लिपि एवं संस्कृत भाषा में एक लेख खुदा हुआ है। लेख भगवान बुद्ध की वंदना से प्रांरभ होता है, जिसे छोड़कर शेष संपूर्ण लेख छंदों में हैं।
- ↑ विस्तार के लिए द्रष्टव्य, आर्कियोलाजिकल सर्वेऑफ़ इंडिया (एनुअल रिपोर्ट), 1907-08, पृष्ठ 117
- ↑ मेमायर्स ऑफ़ दि आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया, संख्या 50, पृष्ठ 3
- ↑ वी.ए. स्मिथ, कौशांबी एंड श्रावस्ती, जर्नल आफ दि रायल एशियाटिक सोसाइटी (1898) पृष्ठ 527
- ↑ सिंह, डॉ. अशोक कुमार उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम नगर (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 98-124।
- ↑ सुत्तनिपात (सारनाथ संस्करण), पृष्ठ 212-13; जी.पी. मललसेकर, डिक्शनरी आफ पालि प्रापर नेम्स, भाग दो, (लंदन 1960), पृष्ठ 1126
- ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
बाहरी कड़ियाँ
- श्रावस्ती
- श्रावस्ती भ्रमण
- श्री श्रावस्ती, यू.पी.
- Sravasti, Uttar Pradesh, India
- The ancient geography of India, Volume 1 (By Sir Alexander Cunningham), ऑन लाइन पढ़िये और सुनिये
संबंधित लेख