गीता 5:7: Difference between revisions
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दूसरे [[श्लोक]] में कर्मयोग और सांख्ययोग की सूत्र रूप से फल में एकता बतलाकर सांख्ययोग की अपेक्षा सुगमता के कारण कर्मयोग श्रेष्ठ बतलाया। फिर तीसरे श्लोक में कर्मयोगी की प्रशंसा करके, चौथे और पाँचवें श्लोकों में दोनों के फल की एकता का और स्वतन्त्रता का भली-भाँति प्रतिपादन किया। तदनन्तर छठे श्लोक के पूवार्द्ध में कर्मयोग के बिना सांख्ययोग का सम्पादन कठिन बतलाकर | दूसरे [[श्लोक]] में कर्मयोग और सांख्ययोग की सूत्र रूप से फल में एकता बतलाकर सांख्ययोग की अपेक्षा सुगमता के कारण कर्मयोग श्रेष्ठ बतलाया। फिर तीसरे श्लोक में कर्मयोगी की प्रशंसा करके, चौथे और पाँचवें श्लोकों में दोनों के फल की एकता का और स्वतन्त्रता का भली-भाँति प्रतिपादन किया। तदनन्तर छठे श्लोक के पूवार्द्ध में कर्मयोग के बिना सांख्ययोग का सम्पादन कठिन बतलाकर उत्तरार्ध में कर्मयोग की सुगमता का प्रतिपादन करते हुए सातवें श्लोक में कर्मयोगी के लक्षण बतलाये। इससे यह बात सिद्ध हुई कि दोनों साधनों का फल एक होने पर भी दोनों साधन परस्पर भिन्न हैं। अत: दोनों का स्वरूप जानने की इच्छा होने पर भगवान् पहले, आठवें और नवें श्लोकों में सांख्ययोगी के व्यवहार काल के साधन का स्वरूप बतलाते हैं- | ||
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Latest revision as of 11:14, 1 June 2017
गीता अध्याय-5 श्लोक-7 / Gita Chapter-5 Verse-7
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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