गीता 3:9: Difference between revisions

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पूर्व [[श्लोक]] में भगवान् ने यह बात कही कि यज्ञ के निमित्त कर्म करने वाला मनुष्य कर्मों से नहीं बँधता; इसलिये यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि यज्ञ किस को कहते हैं, उसे क्यों करना चाहिये और उसके लिये कर्म करने वाला मनुष्य कैसे नहीं बँधता। अतएव इन बातों को समझाने के लिये भगवान् ब्रह्माजी<ref>सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।</ref> के वचनों का प्रमाण देकर कहते हैं-
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Latest revision as of 07:28, 7 November 2017

गीता अध्याय-3 श्लोक-9 / Gita Chapter-3 Verse-9

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में भगवान् ने यह बात कही कि यज्ञ के निमित्त कर्म करने वाला मनुष्य कर्मों से नहीं बँधता; इसलिये यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि यज्ञ किस को कहते हैं, उसे क्यों करना चाहिये और उसके लिये कर्म करने वाला मनुष्य कैसे नहीं बँधता। अतएव इन बातों को समझाने के लिये भगवान् ब्रह्माजी[1] के वचनों का प्रमाण देकर कहते हैं-


यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धन: ।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंग्ङ: समाचर ।।9।।



यज्ञ के निमित्त किये जाने वाले कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ ही यह मनुष्य समुदाय कर्मों से बँधता है । इसलिये हे अर्जुन[2] ! तू आसक्ति से रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त् ही भलीभाँति कर्तव्य कर्म कर ।।9।।

Man is bound by his own action except when it is performed for the sake of sacrifice. Therefore, Arjuna, do you efficiently perform your duty, free from attachment; for the sake of sacrifice alone. (9)


यज्ञार्थात् = यज्ञ अर्थात् विष्णुके निमित्त किये हुए ; अयम् = यह ; लोक: = मनुष्य ; कर्मबन्धन: = कर्मोद्वारा बंधता है (इसलिये) ; कौन्तेय = हे अर्जुन ; कर्मण: = कर्मके सिवाय ; अन्यत्र = अन्य कर्ममें (लगा हुआ ही) ; मुक्तसग्ड: = आसक्तिसे रहित हुआ; तदर्थम् = उस परमेश्र्वरके निमित्त ; कर्म = कर्मका ; समाचर = भली प्रकार आचरण कर ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।
  2. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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