आदित्यसेन: Difference between revisions

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'''आदित्यसेन''' माधवगुप्त की मृत्यु (650 ई.) के बाद [[मगध]] की राजगद्दी पर बैठा था। वह एक वीर योद्धा और कुशल प्रशासक था। उसने 675 ई. तक शासन किया। आदित्यसेन ने तीन [[अश्वमेध यज्ञ]] भी किये थे। उसने अपनी पुत्री का [[विवाह]] [[मौखरि वंश]] के भोगवर्द्धन से किया था। उसकी दौहित्री का विवाह [[नेपाल]] के नरेश 'शिवदेव' के साथ सम्पन्न हुआ था और उसके पुत्र जयदेव का विवाह [[कामरूप]] नरेश हर्षदेव की पुत्री राज्यमती से हुआ था।
'''आदित्यसेन''' माधवगुप्त की मृत्यु (650 ई.) के बाद [[मगध]] की राजगद्दी पर बैठा था। वह एक वीर योद्धा और कुशल प्रशासक था। उसने 675 ई. तक शासन किया। हर्ष के जीवनकाल में तो वह चुपचाप सामंत ही बना रहा, पर उसके मरते ही उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर सम्राटों के विरुद्ध शस्त्रास्त्र धारण किए। आदित्यसेन ने तीन [[अश्वमेध यज्ञ]] भी किये थे। उसने अपनी पुत्री का [[विवाह]] [[मौखरि वंश]] के भोगवर्द्धन से किया था। उसकी दौहित्री का विवाह [[नेपाल]] के नरेश 'शिवदेव' के साथ सम्पन्न हुआ था और उसके पुत्र जयदेव का विवाह [[कामरूप]] नरेश हर्षदेव की पुत्री राज्यमती से हुआ था।
==साम्राज्य विस्तार==
==साम्राज्य विस्तार==
[[अपसढ़]] और [[शाहपुर]] से प्राप्त लेखों के आधार पर आदित्यसेन का मगध पर आधिपत्य प्रमाणित होता है। मंदार पर्वत पर लिखे हुए एक लेख में [[अंग जनपद|अंग राज्य]] पर आदित्यसेन के अधिकार का भी उल्लेख किया गया है। आदित्यसेन ने एक बड़े भूभाग पर अपना साम्राज्य विस्तार पूर्ण किया था। अपने पूरे शासन काल में उसने तीन 'अश्वमेध यज्ञ' किये थे। वह शिलालेख जो मंदार पर्वत पर स्थित है, उससे ज्ञात होता है कि आदित्यसेन ने [[चोल साम्राज्य]] की भी विजय कर ली थी। आदित्यसेन [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा]] और [[अवध]] के अन्तर्गत एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने वाला प्रथम शासक था।
[[अपसढ़]] और [[शाहपुर, बिहार|शाहपुर]] से प्राप्त लेखों के आधार पर आदित्यसेन का मगध पर आधिपत्य प्रमाणित होता है। मंदार पर्वत पर लिखे हुए एक लेख में [[अंग जनपद|अंग राज्य]] पर आदित्यसेन के अधिकार का भी उल्लेख किया गया है। आदित्यसेन ने एक बड़े भूभाग पर अपना साम्राज्य विस्तार पूर्ण किया था। अपने पूरे शासन काल में उसने तीन 'अश्वमेध यज्ञ' किये थे। उसके अश्वमेध में अनुष्ठान से प्रकट है कि उसने कुछ भूमि भी निश्चय जीती होगी, और लेख में उसे 'आसमुद्र पृथ्वी का स्वामी' कहा भी गया है। वह शिलालेख जो मंदार पर्वत पर स्थित है, उससे ज्ञात होता है कि आदित्यसेन ने [[चोल साम्राज्य]] की भी विजय कर ली थी। आदित्यसेन [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा]] और [[अवध]] के अन्तर्गत एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने वाला प्रथम शासक था।
==परम्परा अनुयायी==
==परम्परा अनुयायी==
आदित्यसेन ने अपने पूर्ववर्ती [[गुप्त]] सम्राटों की भाँति ही उनकी परम्पराओं का अनुसरण किया था। चीनी राजदूत 'वांग-यूएन-त्से' ने आदित्यसेन के समय में ही दो बार [[भारत]] की यात्रा की थी। कोरिया के [[बौद्ध]] यात्री के अनुसार आदित्यसेन ने '[[बोधगया]]' में एक बौद्ध मन्दिर का निर्माण भी करवाया था।
आदित्यसेन ने अपने पूर्ववर्ती [[गुप्त]] सम्राटों की भाँति ही उनकी परम्पराओं का अनुसरण किया था। चीनी राजदूत 'वांग-यूएन-त्से' ने आदित्यसेन के समय में ही दो बार [[भारत]] की यात्रा की थी। कोरिया के [[बौद्ध]] यात्री के अनुसार आदित्यसेन ने '[[बोधगया]]' में एक बौद्ध मन्दिर का निर्माण भी करवाया था। आदित्यसेन की मृत्यु के बाद उत्तरकालीन गुप्तों की राजधानी विचलित हो चली।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=369 |url=}}</ref>




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Latest revision as of 11:47, 12 June 2018

आदित्यसेन माधवगुप्त की मृत्यु (650 ई.) के बाद मगध की राजगद्दी पर बैठा था। वह एक वीर योद्धा और कुशल प्रशासक था। उसने 675 ई. तक शासन किया। हर्ष के जीवनकाल में तो वह चुपचाप सामंत ही बना रहा, पर उसके मरते ही उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर सम्राटों के विरुद्ध शस्त्रास्त्र धारण किए। आदित्यसेन ने तीन अश्वमेध यज्ञ भी किये थे। उसने अपनी पुत्री का विवाह मौखरि वंश के भोगवर्द्धन से किया था। उसकी दौहित्री का विवाह नेपाल के नरेश 'शिवदेव' के साथ सम्पन्न हुआ था और उसके पुत्र जयदेव का विवाह कामरूप नरेश हर्षदेव की पुत्री राज्यमती से हुआ था।

साम्राज्य विस्तार

अपसढ़ और शाहपुर से प्राप्त लेखों के आधार पर आदित्यसेन का मगध पर आधिपत्य प्रमाणित होता है। मंदार पर्वत पर लिखे हुए एक लेख में अंग राज्य पर आदित्यसेन के अधिकार का भी उल्लेख किया गया है। आदित्यसेन ने एक बड़े भूभाग पर अपना साम्राज्य विस्तार पूर्ण किया था। अपने पूरे शासन काल में उसने तीन 'अश्वमेध यज्ञ' किये थे। उसके अश्वमेध में अनुष्ठान से प्रकट है कि उसने कुछ भूमि भी निश्चय जीती होगी, और लेख में उसे 'आसमुद्र पृथ्वी का स्वामी' कहा भी गया है। वह शिलालेख जो मंदार पर्वत पर स्थित है, उससे ज्ञात होता है कि आदित्यसेन ने चोल साम्राज्य की भी विजय कर ली थी। आदित्यसेन उत्तर प्रदेश के आगरा और अवध के अन्तर्गत एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने वाला प्रथम शासक था।

परम्परा अनुयायी

आदित्यसेन ने अपने पूर्ववर्ती गुप्त सम्राटों की भाँति ही उनकी परम्पराओं का अनुसरण किया था। चीनी राजदूत 'वांग-यूएन-त्से' ने आदित्यसेन के समय में ही दो बार भारत की यात्रा की थी। कोरिया के बौद्ध यात्री के अनुसार आदित्यसेन ने 'बोधगया' में एक बौद्ध मन्दिर का निर्माण भी करवाया था। आदित्यसेन की मृत्यु के बाद उत्तरकालीन गुप्तों की राजधानी विचलित हो चली।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 369 |

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