अनमोल वचन 15: Difference between revisions
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* जहां विनय है, वहां भय नहीं है। ~ कन्नड़ लोकोक्ति | * जहां विनय है, वहां भय नहीं है। ~ कन्नड़ लोकोक्ति | ||
* कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन, यह एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~ लोकोक्ति | * कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन, यह एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए। ~ लोकोक्ति | ||
* वह विजय | * वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति | ||
* कोई भी तजुर्बा अच्छा है, बशर्ते उसकी ज़्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़े। ~ एक कहावत | * कोई भी तजुर्बा अच्छा है, बशर्ते उसकी ज़्यादा कीमत नहीं चुकानी पड़े। ~ एक कहावत | ||
* डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत | * डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत | ||
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* वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति | * वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति | ||
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ एक चीनी कहावत | * उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ एक चीनी कहावत | ||
* वह विजय | * वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति | ||
* बीमारी से भी कहीं ज़्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत | * बीमारी से भी कहीं ज़्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत | ||
* डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत | * डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को ज़मीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत | ||
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* आपके पास पचास मित्र हैं, यह अधिक नहीं है। आपके पास एक शत्रु है, यह बहुत अधिक है। ~ एक कहावत | * आपके पास पचास मित्र हैं, यह अधिक नहीं है। आपके पास एक शत्रु है, यह बहुत अधिक है। ~ एक कहावत | ||
* ज्ञान अनुभव की बेटी है। ~ कहावत | * ज्ञान अनुभव की बेटी है। ~ कहावत | ||
* सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई | * सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता। बाल के समान पतले इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। ~ हाफिज | ||
* जो कुछ तुम्हें मिल गया है, उस पर संतोष करो और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करो। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। ~ हाफिज | * जो कुछ तुम्हें मिल गया है, उस पर संतोष करो और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करो। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। ~ हाफिज | ||
* दु:ख में एक भी क्षण व्यतीत करना संसार के सारे सुखों से बढ़कर है। ~ हाफिज | * दु:ख में एक भी क्षण व्यतीत करना संसार के सारे सुखों से बढ़कर है। ~ हाफिज | ||
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* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी | * हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी | ||
* हमारी इच्छाओं और हार्दिक भावों का सीधा असर हमारे चेहरे पर पड़ता है। ~ साने गुरुजी | * हमारी इच्छाओं और हार्दिक भावों का सीधा असर हमारे चेहरे पर पड़ता है। ~ साने गुरुजी | ||
* जो संस्कृति | * जो संस्कृति महान् होती है वह दूसरो की संस्कृति को भय नहीं देती, बल्कि उसे साथ लेकर पवित्रता देती है। [[गंगा]] महान् क्यों है? दूसरे प्रवाहों को अपने मे मिला लेने के कारण ही वह पवित्र रहती है। ~ साने गुरु | ||
* संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ [[भागवत पुराण|भागवत]] | * संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं। ~ [[भागवत पुराण|भागवत]] | ||
* संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सुखमयी हैं। जैसे जूता पहने वाले के लिए कंकड़- कांटे आदि से दु:ख नहीं होता। ~ भागवत | * संतुष्ट मन वाले के लिए सभी दिशाएं सुखमयी हैं। जैसे जूता पहने वाले के लिए कंकड़- कांटे आदि से दु:ख नहीं होता। ~ भागवत | ||
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत | * जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत | ||
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। ~ भागवत | * आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। ~ भागवत | ||
* किसी | * किसी महान् कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। ~ भागवत | ||
* यही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमा-भाव रखें। ~ भागवत | * यही साधुता है कि स्वयं समर्थ होने पर क्षमा-भाव रखें। ~ भागवत | ||
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। ~ [[मनुस्मृति]] | * तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। ~ [[मनुस्मृति]] | ||
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* इस संसार में दु:ख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। ~ योग वसिष्ठ | * इस संसार में दु:ख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। ~ योग वसिष्ठ | ||
* भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं। ~ योग वसिष्ठ | * भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं। ~ योग वसिष्ठ | ||
* ठीक समय पर किया हुआ थोड़ा-सा काम भी बहुत उपकारी है और समय बीतने पर किया हुआ | * ठीक समय पर किया हुआ थोड़ा-सा काम भी बहुत उपकारी है और समय बीतने पर किया हुआ महान् उपकार भी व्यर्थ हो जाता है। ~ योग वसिष्ठ | ||
* सबकुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है। ~ योग वसिष्ठ | * सबकुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है। ~ योग वसिष्ठ | ||
* जिनका शम-दम आदि गुणों के विषय में संतोष नहीं है, जिनका ज्ञान के प्रति अनुराग है तथा जिनको सत्य के आचरण का ही व्यसन है, वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, दूसरे पशु हैं। ~ योग वसिष्ठ | * जिनका शम-दम आदि गुणों के विषय में संतोष नहीं है, जिनका ज्ञान के प्रति अनुराग है तथा जिनको सत्य के आचरण का ही व्यसन है, वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, दूसरे पशु हैं। ~ योग वसिष्ठ | ||
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* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। ~ काका कालेलकर | * अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। ~ काका कालेलकर | ||
* चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ [[समर्थ रामदास]] | * चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। ~ [[समर्थ रामदास]] | ||
* मनुष्य के अंतरंग का | * मनुष्य के अंतरंग का श्रृंगार है चातुर्य, वस्त्र तो केवल बाहरी सजावट है। ~ गुरु रामदास | ||
* अन्य व्यक्ति को तुम कम से कम एक मुस्कान तो दे ही सकते हो - प्रेम और आनंद से भरी मुस्कान। यह उसके मन पर लदा चिंताओं का बोझ हटा देगी। ~ स्वामी रामदास | * अन्य व्यक्ति को तुम कम से कम एक मुस्कान तो दे ही सकते हो - प्रेम और आनंद से भरी मुस्कान। यह उसके मन पर लदा चिंताओं का बोझ हटा देगी। ~ स्वामी रामदास | ||
* जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है। जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद | * जीवन को नियम के अधीन कर देना आलस्य पर विजय पाना है। जीवन को नियम के अधीन कर देना प्रमाद को सदा के लिए विदा कर देना है। ~ स्वामी अखंडानंद | ||
* जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। ~ स्वामी अखंडानंद | * जगद्गुरु कौन होता है? जो सब में बिना किसी भेदभाव के अपने सद्भाव और आनंद भाव का प्रकार करे। उसके लिए सब अपने हैं। सब कुछ अपना स्वरूप है। ~ स्वामी अखंडानंद | ||
* कोई भी वस्तु | * कोई भी वस्तु महान् का आश्रय पाकर उत्कर्ष प्राप्त करती है। ~ हर्ष | ||
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, किंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष | * मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, किंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष | ||
* अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष | * अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष | ||
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* सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। ~ उत्तराध्ययन | * सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। ~ उत्तराध्ययन | ||
* प्रिय होने पर भी जो हितकर न हो, उसे न कहें। हितकर कहना ही अच्छा है, चाहे वह अत्यंत अप्रिय हो। ~ [[विष्णु पुराण]] | * प्रिय होने पर भी जो हितकर न हो, उसे न कहें। हितकर कहना ही अच्छा है, चाहे वह अत्यंत अप्रिय हो। ~ [[विष्णु पुराण]] | ||
* | * विद्वान् झगड़े में न पड़ें। व्यर्थ के वैर से अलग रहें। थोड़ी हानि सह लें। वैर से धन की प्राप्ति हो, तो भी उसे छोड़ दें। ~ विष्णु पुराण | ||
* जो जिस विद्या से युक्त है, वही उसके लिए परम देवता है। वह पूज्य और अर्चनीय है और वही उसके लिए उपकारिका है। ~ विष्णु पुराण | * जो जिस विद्या से युक्त है, वही उसके लिए परम देवता है। वह पूज्य और अर्चनीय है और वही उसके लिए उपकारिका है। ~ विष्णु पुराण | ||
* लोभ पाप का मूल है, द्वेष पाप का मूल है और मोह पाप का मूल है। ~ मज्झिम निकाय | * लोभ पाप का मूल है, द्वेष पाप का मूल है और मोह पाप का मूल है। ~ मज्झिम निकाय | ||
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* प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। ~ भगवतीचरण वर्मा | * प्रशासन की जन के प्रति दुर्भावना भी एक प्रकार का अत्याचार ही है। जनतंत्र में जन से ऊपर कुछ नहीं। ~ भगवतीचरण वर्मा | ||
* जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभ देव | * जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभ देव | ||
* धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दु:ख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दु:ख में | * धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दु:ख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दु:ख में महान् धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं। ~ वल्लभदेव | ||
* उचित अवसर पर कही गई असुंदर वाणी भी उसी तरह सुशोभित होती जिस तरह भूख में नितांत अस्वादु भोजन भी सुस्वादु हो जाता है। ~ वल्लभदेव | * उचित अवसर पर कही गई असुंदर वाणी भी उसी तरह सुशोभित होती जिस तरह भूख में नितांत अस्वादु भोजन भी सुस्वादु हो जाता है। ~ वल्लभदेव | ||
* धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है। ~ [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डॉ. राधाकृष्णन]] | * धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है। ~ [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डॉ. राधाकृष्णन]] | ||
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* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे | * जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे | ||
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे | * किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे | ||
* यदि बात तुम्हारे हृदय से | * यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्ननहीं हुई है तो तुम कदापि दूसरों के [[हृदय]] प्रभावित नहीं कर सकते। ~ गेटे | ||
* लोगों की धर्म तथा अधर्म की प्रवृत्ति में कारण राजा ही होता है। ~ शुक्रनीति | * लोगों की धर्म तथा अधर्म की प्रवृत्ति में कारण राजा ही होता है। ~ शुक्रनीति | ||
* जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। ~ शुक्रनीति | * जैसा मनुष्य के लिए सौजन्य रूपी अलंकार है, वैसा न तो आभूषण है, न राज्य, न पैरुष, न विद्या और न धन। ~ शुक्रनीति | ||
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* शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। ~ लोकमान्य तिलक | * शरीर निर्बल और रोगी रखने के समान दूसरा कोई पाप नहीं। ~ लोकमान्य तिलक | ||
* यदि राजसत्ता अत्याचारी हो तो किसान का सीधा उत्तर है- जा, जा, तेरे ऐसे कितने राज मैंने मिट्टी में मिलते देखे हैं। ~ [[सरदार पटेल]] | * यदि राजसत्ता अत्याचारी हो तो किसान का सीधा उत्तर है- जा, जा, तेरे ऐसे कितने राज मैंने मिट्टी में मिलते देखे हैं। ~ [[सरदार पटेल]] | ||
* | * विद्वान् तो बहुत होते हैं, लेकिन विद्या के साथ जीवन का आचरण करने वाले कम होते हैं। ~ सरदार पटेल | ||
* पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। ~ [[भवभूति]] | * पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। ~ [[भवभूति]] | ||
* कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति | * कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति | ||
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* विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? ~ भामह | * विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? ~ भामह | ||
* सज्जनों की संगति होने पर दुर्जनों में भी सुजनता आ ही जाती है। ~ क्षत्रचूड़ामणि | * सज्जनों की संगति होने पर दुर्जनों में भी सुजनता आ ही जाती है। ~ क्षत्रचूड़ामणि | ||
* | * महान् ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। ~ [[जवाहरलाल नेहरू|नेहरू]] | ||
* | * महान् लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य | ||
* कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता। ~ कबीर | * कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता। ~ कबीर | ||
* भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता | * भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता | ||
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* आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है। कामना से क्रोध उत्पन्न होता है। ~ [[गीता|भगवद्गीता]] | * आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है। कामना से क्रोध उत्पन्न होता है। ~ [[गीता|भगवद्गीता]] | ||
* जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ [[सी. राजगोपालाचारी|राजगोपालाचारी]] | * जब करुणा के नेत्र खुल जाते हैं तो व्यक्ति अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में देख सकने में समर्थ हो जाता है। ~ [[सी. राजगोपालाचारी|राजगोपालाचारी]] | ||
* इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म | * इस धरती पर कर्म करते-करते सौ साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्म-निष्ठा छोड़कर भोग-वृत्ति रखता है, वह मृत्यु का अधिकारी बनता है। ~ [[वेद]] | ||
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव | * सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव | ||
* निष्कपट प्रेम किसी भी कपट को नहीं सह सकता है। ~ चैतन्यचंदोदयम् | * निष्कपट प्रेम किसी भी कपट को नहीं सह सकता है। ~ चैतन्यचंदोदयम् | ||
Line 405: | Line 405: | ||
* अपने पर अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। संदेह या प्रश्नों को परास्त करने की शक्ति ही जिज्ञासु की श्रद्धा कहलाती है। ~ [[वासुदेवशरण अग्रवाल]] | * अपने पर अविश्वास का होना अश्रद्धा का रूप है। प्रश्नों का उत्पन्न न होना तो तम या मूर्च्छा है। संदेह या प्रश्नों को परास्त करने की शक्ति ही जिज्ञासु की श्रद्धा कहलाती है। ~ [[वासुदेवशरण अग्रवाल]] | ||
* मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है। ~ मिलिंदप्रश्न | * मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है। ~ मिलिंदप्रश्न | ||
* अभ्यास के लिए अभिलाषा | * अभ्यास के लिए अभिलाषा ज़रूरी है। जिस अभिलाषा में शक्ति नहीं, उसकी पूर्ति असंभव है। ~ गुलाब रत्न वाजपेयी | ||
* बीते हुए का शोक नहीं करते। आने वाले भविष्य की चिंता नहीं करते। जो है, उसी में निर्वाह करते हैं। इसी से साधकों का चेहरा खिला रहता है। ~ संयुत्तनिकाय | * बीते हुए का शोक नहीं करते। आने वाले भविष्य की चिंता नहीं करते। जो है, उसी में निर्वाह करते हैं। इसी से साधकों का चेहरा खिला रहता है। ~ संयुत्तनिकाय | ||
* जो साधक चरित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है। ~ आचार्य भद्रबाहु | * जो साधक चरित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार-समुद्र में डूब जाता है। ~ आचार्य भद्रबाहु | ||
Line 461: | Line 461: | ||
* कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | * कान से सुनकर लोग चलते हैं, आंख से देखकर चलने वाले कम हैं। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र | ||
* विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। ~ बाण | * विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। ~ बाण | ||
* विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत | * विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान् और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। ~ इत्तिवृत्तक | ||
* मैं | * मैं महान् उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। ~ गुरुदत्त | ||
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना काम करना ही चाहिए। ~ अपभ्रंश से | * यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना काम करना ही चाहिए। ~ अपभ्रंश से | ||
* धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं। प्रिय करना चाहिए, अप्रिय नही। सत्य करना चाहिए, असत्य नहीं। ~ संयुत्तनिकाय | * धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं। प्रिय करना चाहिए, अप्रिय नही। सत्य करना चाहिए, असत्य नहीं। ~ संयुत्तनिकाय | ||
Line 478: | Line 478: | ||
* राज शक्ति का स्थान जन शक्ति से ऊंचा नहीं है। ~ [[जयप्रकाश नारायण]] | * राज शक्ति का स्थान जन शक्ति से ऊंचा नहीं है। ~ [[जयप्रकाश नारायण]] | ||
* गूंगा कौन है? जो समयानुसार प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता। ~ अमोघवर्ष | * गूंगा कौन है? जो समयानुसार प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता। ~ अमोघवर्ष | ||
* भली प्रकार प्रयुक्त की गई वाणी को विद्वानों ने कामनापूर्ण | * भली प्रकार प्रयुक्त की गई वाणी को विद्वानों ने कामनापूर्ण करने वाली कामधेनु कहा है। ~ [[दण्डी]] | ||
* 'आज' निश्चित है, जो 'कल' है, वह अनिश्चित है। ~ [[शतपथ ब्राह्मण|शतपथ]] | * 'आज' निश्चित है, जो 'कल' है, वह अनिश्चित है। ~ [[शतपथ ब्राह्मण|शतपथ]] | ||
* प्रकृति-पुरुष के संयोग से ब्रह्मांड की रचना ही रासलीला है। इस रासलीला में परमात्मा की सहचरी माया या प्रकृति ही राधा है। ~ गंगेश्वरानंद | * प्रकृति-पुरुष के संयोग से ब्रह्मांड की रचना ही रासलीला है। इस रासलीला में परमात्मा की सहचरी माया या प्रकृति ही राधा है। ~ गंगेश्वरानंद | ||
Line 499: | Line 499: | ||
* बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। ~ एरिस्टोफेनिज | * बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। ~ एरिस्टोफेनिज | ||
* झूठा नाता जगत् का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। ~ सहजोबाई | * झूठा नाता जगत् का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। ~ सहजोबाई | ||
* | * महान् लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य | ||
* कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता। ~ कबीर | * कभी किसी महात्मा से यह न पूछो कि तुम्हारी जाति क्या है क्योंकि भगवान के दरबार में जाति का बंधन नहीं रह जाता। ~ कबीर | ||
* भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता | * भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता | ||
Line 509: | Line 509: | ||
* गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। ~ [[भगिनी निवेदिता]] | * गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। ~ [[भगिनी निवेदिता]] | ||
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। ~ मुक्तिकोपनिषद | * जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। ~ मुक्तिकोपनिषद | ||
* वही अच्छी प्रार्थना करता है जो | * वही अच्छी प्रार्थना करता है जो महान् और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कालरिज | ||
* पढ़ना सुलभ है पर उसका पालन करना अत्यंत दुर्लभ। ~ ललद्देश्वरी | * पढ़ना सुलभ है पर उसका पालन करना अत्यंत दुर्लभ। ~ ललद्देश्वरी | ||
* सज्जन अत्यंत क्रुद्ध होने पर भी मिलने-जुलने से मृदु हो जाते हैं, किंतु नीच नहीं। ~ अमृतवर्धन | * सज्जन अत्यंत क्रुद्ध होने पर भी मिलने-जुलने से मृदु हो जाते हैं, किंतु नीच नहीं। ~ अमृतवर्धन | ||
* धर्मान्धो! सुनो, दूसरों के पाप गिनने से पहले अपने पापों को गिनो। ~ | * धर्मान्धो! सुनो, दूसरों के पाप गिनने से पहले अपने पापों को गिनो। ~ क़ाज़ी नजरूल इस्लाम | ||
* सरलता कुटिल व्यक्तियों के प्रति नीति नहीं है। ~ नैषिधीपंचारत | * सरलता कुटिल व्यक्तियों के प्रति नीति नहीं है। ~ नैषिधीपंचारत | ||
* चींटी चलती रहे तो हजारों योजन पार कर जाती है। न चलता हुआ गरुण भी एक क़दम आगे नहीं चलता। ~ [[मार्कण्डेय पुराण]] | * चींटी चलती रहे तो हजारों योजन पार कर जाती है। न चलता हुआ गरुण भी एक क़दम आगे नहीं चलता। ~ [[मार्कण्डेय पुराण]] | ||
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* लज्जा और संकोच करने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है। ~ विसुद्ध्मिग्ग | * लज्जा और संकोच करने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है। ~ विसुद्ध्मिग्ग | ||
* दु:ख, सुख के साथ ही निरंतर घूमता रहता है। ~ वीणावासवदत्ता | * दु:ख, सुख के साथ ही निरंतर घूमता रहता है। ~ वीणावासवदत्ता | ||
* जो व्यक्ति मूर्ख के सामने | * जो व्यक्ति मूर्ख के सामने विद्वान् दिखने की कामना करते हैं, वे विद्वानों के सामने मूर्ख लगते हैं। ~ क्विन्टिलियन | ||
* विश्वास लाख हथौड़ी की चोट से भी नहीं टूटता। नीलकंठ के समान विष पान करके भी विश्वास सदा अजर अमर है। ~ [[अमृतलाल नागर]] | * विश्वास लाख हथौड़ी की चोट से भी नहीं टूटता। नीलकंठ के समान विष पान करके भी विश्वास सदा अजर अमर है। ~ [[अमृतलाल नागर]] | ||
* विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। ~ अभिनंद | * विपत्ति में प्रकृति बदल देना अच्छा है, पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना अच्छा नहीं। ~ अभिनंद | ||
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* वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसता है, जो अमृत-वाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रतावश सदा नीचे रहते हैं। ~ मलूकदास | * वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसता है, जो अमृत-वाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रतावश सदा नीचे रहते हैं। ~ मलूकदास | ||
* कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं। ~ [[गणेश शंकर विद्यार्थी]] | * कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं। ~ [[गणेश शंकर विद्यार्थी]] | ||
* प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, | * प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन् हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है। ~ [[लाला हरदयाल]] | ||
* समग्र विश्व एक ही परिवार है। वर्णभेद सब असत्य है। प्रेम बंधन अमूल्य है। ~ [[गुरुजाडा अप्पाराव]] | * समग्र विश्व एक ही परिवार है। वर्णभेद सब असत्य है। प्रेम बंधन अमूल्य है। ~ [[गुरुजाडा अप्पाराव]] | ||
* हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता | * हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता | ||
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन | * प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन | ||
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही | * सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान् फल देता है। ~ कथासरित्सागर | ||
* पापी का उपकार करो और पाप का प्रतिकार करो। ~ मैथिलीशरण गुप्त | * पापी का उपकार करो और पाप का प्रतिकार करो। ~ मैथिलीशरण गुप्त | ||
* आपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालें तो भी क्या होगा? ~ मानु रामसिंह | * आपत्तियों से मूर्च्छित मनुष्य चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है। प्राणहीन मनुष्य पर हजारों घड़े पानी डालें तो भी क्या होगा? ~ मानु रामसिंह | ||
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* वही प्रशंसनीय है जो विपत्ति में अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। ~ प्रकाशवर्ष | * वही प्रशंसनीय है जो विपत्ति में अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। ~ प्रकाशवर्ष | ||
* श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्माण | * श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है। ~ ऐतरेय ब्राह्माण | ||
* श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा | * श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा करने वाला त्रिकाल में भी कभी निराश नहीं होता। ~ राम प्रताप त्रिपाठी | ||
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन है, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल | * यद्यपि सब कर्म देवाधीन है, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल | ||
* पूर्ण मनुष्य वही है जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो। ~ शब्सतरी | * पूर्ण मनुष्य वही है जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो। ~ शब्सतरी | ||
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* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। ~ डिजरायली | * धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। ~ डिजरायली | ||
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। ~ डिजरायली | * वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। ~ डिजरायली | ||
* विरोध हर सरकार के लिए | * विरोध हर सरकार के लिए ज़रूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। ~ डिजरायली | ||
* यदि मनुष्य प्रतीक्षा करे तो हर वस्तु प्राप्त हो जाती है। ~ डिजरायली | * यदि मनुष्य प्रतीक्षा करे तो हर वस्तु प्राप्त हो जाती है। ~ डिजरायली | ||
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* दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडीसन | * दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडीसन | ||
* सदाचार के आचरण के अतिरिक्त विश्वास को दृढ़ बनाने वाली दूसरी वस्तु नहीं है। ~ एडीसन | * सदाचार के आचरण के अतिरिक्त विश्वास को दृढ़ बनाने वाली दूसरी वस्तु नहीं है। ~ एडीसन | ||
* वही मनुष्य | * वही मनुष्य महान् है जो भीड़ की प्रशंसा की उपेक्षा कर सकता है और उसकी कृपा से स्वतंत्र रहकर प्रसन्न रहता है। ~ एडीसन | ||
* समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को और विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन | * समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को और विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन | ||
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* दी गई सलाह का शायद ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी अधिकतम आवश्यकता होती है, वे ही इसे सबसे कम पसंद करते हैं। ~ जॉनसन | * दी गई सलाह का शायद ही स्वागत होता है। जिन्हें इसकी अधिकतम आवश्यकता होती है, वे ही इसे सबसे कम पसंद करते हैं। ~ जॉनसन | ||
* भविष्य को वर्तमान ख़रीदता है। ~ जॉनसन | * भविष्य को वर्तमान ख़रीदता है। ~ जॉनसन | ||
* कोई व्यक्ति नकल से अभी तक | * कोई व्यक्ति नकल से अभी तक महान् नहीं हुआ है। ~ जॉनसन | ||
* सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। ~ जॉनसन | * सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। ~ जॉनसन | ||
* झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन है। ~ बेन जॉनसन | * झूठे आरोपों का सर्वोत्तम उत्तर मौन है। ~ बेन जॉनसन | ||
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* धूर्तता और भोलेपन के बीच विवेक का स्वर रुद्ध हो जाता है। ~ एडमंड वर्क | * धूर्तता और भोलेपन के बीच विवेक का स्वर रुद्ध हो जाता है। ~ एडमंड वर्क | ||
* संपन्नता | * संपन्नता महान् शिक्षक है पर विपत्ति महानतर शिक्षक है। संपत्ति मन को लाड़ से बिगाड़ देती है, किंतु अभाव उसे प्रशिक्षित कर शक्तिशाली बनाता है। ~ हैजलिट | ||
* विनोद उचित मात्रा में ही ठीक रहता है। वह बातचीत का नमक है, भोजन नहीं। ~ हैजलिट | * विनोद उचित मात्रा में ही ठीक रहता है। वह बातचीत का नमक है, भोजन नहीं। ~ हैजलिट | ||
* दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट | * दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं से व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट | ||
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* चरित्र संपत्ति है। यह संपत्ति में सबसे उत्तम है। ~ स्माइल्स | * चरित्र संपत्ति है। यह संपत्ति में सबसे उत्तम है। ~ स्माइल्स | ||
* हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की | * हर भदेसपन को अपने बचाव के लिए एक चैंपियन की ज़रूरत पड़ती है, क्योंकि ग़लती हमेशा बातूनी होती है। ~ ओलिवर गोल्डस्मिथ | ||
* विनोद निर्धन के बस की बात नहीं, वह धनियों का ही सफल होता है। ~ गोल्डस्मिथ | * विनोद निर्धन के बस की बात नहीं, वह धनियों का ही सफल होता है। ~ गोल्डस्मिथ | ||
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* चुनौतियों को स्वीकार करने वाले ही असली बहादुर होते हैं। ~ लू शुन | * चुनौतियों को स्वीकार करने वाले ही असली बहादुर होते हैं। ~ लू शुन | ||
* संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। ~ लाओ-त्से | * संत संचय नहीं करता। प्रत्येक वस्तु को दूसरे की वस्तु समझते हुए दूसरों को देते हुए भी उसके स्वयं के पास उसका आधिक्य है। ~ लाओ-त्से | ||
* जैसे फल के पहले फूल होता है, वैसे ही सत्कार्य के पहले | * जैसे फल के पहले फूल होता है, वैसे ही सत्कार्य के पहले ज़रूरी होता है विश्वास। ~ ह्वैटली | ||
* अगर आप काम करते रहते हैं तो आपके इस दुनिया में होने का अर्थ बना रहता है। रिटायर होने के बाद अपनी बाकी ज़िंदगी टुच्चे खेलों में बिता देने का विचार बहुत बेहूदा है। ~ हैराल्ड जेनीन | * अगर आप काम करते रहते हैं तो आपके इस दुनिया में होने का अर्थ बना रहता है। रिटायर होने के बाद अपनी बाकी ज़िंदगी टुच्चे खेलों में बिता देने का विचार बहुत बेहूदा है। ~ हैराल्ड जेनीन | ||
* नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस | * नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस | ||
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* कृतज्ञता न केवल स्मृति है बल्कि ईश्वर के प्रति उसके उपकारों के लिए हृदय की श्रद्धांजलि है। ~ एन.पी. विल्स | * कृतज्ञता न केवल स्मृति है बल्कि ईश्वर के प्रति उसके उपकारों के लिए हृदय की श्रद्धांजलि है। ~ एन.पी. विल्स | ||
* इस बारे में कोई दो राय नहीं कि किसी भी जीवन-स्थिति में संतुलित रहने की आशा हमारे भीतर से उपजती है। ~ फ्रांसिस जे. ब्रेसलैंड | * इस बारे में कोई दो राय नहीं कि किसी भी जीवन-स्थिति में संतुलित रहने की आशा हमारे भीतर से उपजती है। ~ फ्रांसिस जे. ब्रेसलैंड | ||
* राजा अपने राज्य का प्रथम सेवक होता है। ~ फ्रेडरिक | * राजा अपने राज्य का प्रथम सेवक होता है। ~ फ्रेडरिक महान् | ||
* चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका स्थान प्रतिभा से ऊंचा है। ~ फ्रेडरिक सांडर्स | * चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका स्थान प्रतिभा से ऊंचा है। ~ फ्रेडरिक सांडर्स | ||
* प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार | * प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार | ||
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* कायर व्यक्ति जीवन में हरदम चापलूसी करता रह जाता है और निर्भीक अपने श्रम के बल पर अपनी जगह बना लेने में सफल हो जाता है। ~ अस्त्रोवस्की | * कायर व्यक्ति जीवन में हरदम चापलूसी करता रह जाता है और निर्भीक अपने श्रम के बल पर अपनी जगह बना लेने में सफल हो जाता है। ~ अस्त्रोवस्की | ||
* प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं। ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल | * प्रतिभावान मनुष्य वह कार्य करते हैं जो किए बिना वह रह नहीं सकते। गुणी मनुष्य वह कार्य करते हैं जो वह कर सकते हैं। ~ ओवेन मेरिडेलओवेन मेरिडेल | ||
* | * महान् उपलब्धियों के लिए कर्म ही नहीं करना चाहिए, स्वप्न भी देखना चाहिए, योजना ही नहीं बनानी चाहिए, विश्वास भी करना चाहिए। ~ अनातोले फ्रांस | ||
* संकट का समय ही मनुष्य की आत्मा को परखता है। ~ टॉमस पेन | * संकट का समय ही मनुष्य की आत्मा को परखता है। ~ टॉमस पेन | ||
* अविश्वासी के उत्तम विचार से विश्वासी की भूल कहीं अधिक अच्छी है। ~ टामस रसल | * अविश्वासी के उत्तम विचार से विश्वासी की भूल कहीं अधिक अच्छी है। ~ टामस रसल | ||
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* रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद लोगों को समाजसेवा की तरफ बढ़ना चाहिए। निष्क्रिय लोगों को बर्दाश्त करने का दौर अब बीत गया है। ~ मैगी काह्न | * रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद लोगों को समाजसेवा की तरफ बढ़ना चाहिए। निष्क्रिय लोगों को बर्दाश्त करने का दौर अब बीत गया है। ~ मैगी काह्न | ||
* रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में मेरे लिए सबसे ज़्यादा सुखकर और मुझे सर्वाधिक संतोष देने वाली चीज़ वे यादें हैं जो मैंने अपनी कामकाजी उम्र में दूसरे लोगों को दोस्त बनाकर अर्जित की हैं। ~ मारकस काटो | * रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में मेरे लिए सबसे ज़्यादा सुखकर और मुझे सर्वाधिक संतोष देने वाली चीज़ वे यादें हैं जो मैंने अपनी कामकाजी उम्र में दूसरे लोगों को दोस्त बनाकर अर्जित की हैं। ~ मारकस काटो | ||
* | * महान् की उपासना करना स्वयं महान् होने के बराबर है। ~ मैडम नेकर | ||
* अपने साथियों के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना। ~ माओ-त्से-तुंग | * अपने साथियों के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करने का अर्थ होगा शत्रु के दृष्टिकोण को अपना लेना। ~ माओ-त्से-तुंग | ||
* यदि तुम भूख से पीडि़त किसी कुत्ते को उठा लो और उसकी देखभाल करके उसे खुश करो तो वह तुम्हें कभी नहीं काटेगा। मनुष्य और कुत्ते में यही प्रधान अंतर है। ~ मार्क ट्वेन | * यदि तुम भूख से पीडि़त किसी कुत्ते को उठा लो और उसकी देखभाल करके उसे खुश करो तो वह तुम्हें कभी नहीं काटेगा। मनुष्य और कुत्ते में यही प्रधान अंतर है। ~ मार्क ट्वेन | ||
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* डॉक्टर असंख्य ग़लतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं। ~ सैम्युअल बटलर | * डॉक्टर असंख्य ग़लतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं। ~ सैम्युअल बटलर | ||
* जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। ~ स्पेंसर | * जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। ~ स्पेंसर | ||
* | * ग़रीब वह नहीं है जिसके पास धन नहीं है बल्कि वह है जिसकी अभिलाषाएं बढ़ी हुई हैं। ~ डेनियल | ||
* हर प्रशंसा की तुलना में बुरा समाचार दूर तक जाता है। ~ बाल्टासार ग्राशियन | * हर प्रशंसा की तुलना में बुरा समाचार दूर तक जाता है। ~ बाल्टासार ग्राशियन | ||
* नकद दौलत अल्लादीन का चिराग है। ~ बायरन | * नकद दौलत अल्लादीन का चिराग है। ~ बायरन | ||
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* कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो। ~ बोर्डमैन | * कर्म को बोओ और आदत की फसल काटो। आदत को बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र को बोकर भाग्य की फसल काटो। ~ बोर्डमैन | ||
* उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना | * उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना | ||
* बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं | * बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं ज़रूरी हैं। ख़ाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। ~ जॉर्ज इलियट | ||
* सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं। ~ जार्ज बर्कली | * सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं। ~ जार्ज बर्कली | ||
* जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा। ~ जॉन बनयन | * जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा। ~ जॉन बनयन | ||
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* जो किसी विषय में सिर्फ अपना पक्ष जानता है, वह उस विषय में बहुत ही कम जानता है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल | * जो किसी विषय में सिर्फ अपना पक्ष जानता है, वह उस विषय में बहुत ही कम जानता है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल | ||
* सारे राजनीतिक दल अंत में अपने ही रचे झूठ के कारण समाप्त हो जाते हैं। ~ जॉन अरबुथनट | * सारे राजनीतिक दल अंत में अपने ही रचे झूठ के कारण समाप्त हो जाते हैं। ~ जॉन अरबुथनट | ||
* विकास के लिए यूं तो कई चीज़ें | * विकास के लिए यूं तो कई चीज़ें ज़रूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। ~ जॉन नेल | ||
* चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। ~ जैक डेंपसी | * चैंपियन वह है जो तब भी उठ खड़ा हो, जब वह उठ ही न सकता हो। ~ जैक डेंपसी | ||
* यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। ~ जामी | * यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। ~ जामी |
Latest revision as of 10:02, 9 February 2021
अनमोल वचन |
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