गीता 10:9: Difference between revisions
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निरन्तर मुझमें मन लगाने वाले और मुझ में ही प्राणों को अर्पण करने वाले भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरन्तर सन्तुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरन्तर रमण करते हैं ।।9।। | निरन्तर मुझमें मन लगाने वाले और मुझ में ही प्राणों को अर्पण करने वाले भक्तजन मेरी [[भक्ति]] की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरन्तर सन्तुष्ट होते हैं और मुझ [[वासुदेव (कृष्ण)|वासुदेव]] में ही निरन्तर रमण करते हैं ।।9।। | ||
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मच्चित्ता: = निरन्तर मेरे में मन | मच्चित्ता: = निरन्तर मेरे में मन लगाने वाले (और); मग्दतप्राणा: = मेरे में ही प्राणों को अर्पण करने वाले (भक्तजन); नित्यम् = सदा ही (मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा); परस्परम् = आपस में; बोधयन्त: = मेरे प्रभाव को जानते हुए; च = तथा; माम् = मेरा; कथयन्त: = कथन करते हुए; च = ही; तुष्यन्ति = संतुष्ट होते हैं; रमन्ति = निरन्तर रमण करते हैं | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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गीता अध्याय-10 श्लोक-9 / Gita Chapter-10 Verse-9
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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