गीता 10:8: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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भगवान् के प्रभाव और विभूतियों के ज्ञान का फल अविचल भक्ति योग की प्राप्ति बतलायी गयी, अब दो श्लोकों में उस भक्ति योग की प्राप्ति का क्रम बतलाते हैं- | भगवान् के प्रभाव और विभूतियों के ज्ञान का फल अविचल भक्ति योग की प्राप्ति बतलायी गयी, अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] में उस [[भक्ति]] योग की प्राप्ति का क्रम बतलाते हैं- | ||
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मैं < | मैं वासुदेव<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ही सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत् चेष्टा करता है- इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान् भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरन्तर भजते हैं ।।8।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 11:47, 5 January 2013
गीता अध्याय-10 श्लोक-8 / Gita Chapter-10 Verse-8
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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