गीता 3:5: Difference between revisions
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पूर्व श्लोक में यह बात कही गयी कि कोई मनुष्य क्षण मात्र भी कर्म किये बिना नहीं रहता, इस पर यह शंका होती है कि इन्द्रियों की क्रियाओं को हठ से रोककर भी तो मनुष्य कर्मों का त्याग कर सकता | पूर्व [[श्लोक]] में यह बात कही गयी कि कोई मनुष्य क्षण मात्र भी कर्म किये बिना नहीं रहता, इस पर यह शंका होती है कि [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] की क्रियाओं को हठ से रोककर भी तो मनुष्य कर्मों का त्याग कर सकता है। अत: ऊपर इन्द्रियों की क्रियाओं का त्याग कर देना कर्मों का त्याग नहीं हैं, यह भाव दिखलाने के लिये भगवान् कहते हैं- | ||
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Latest revision as of 09:42, 4 January 2013
गीता अध्याय-3 श्लोक-5 / Gita Chapter-3 Verse-5
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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