गीता 18:5: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 9: Line 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
इस प्रकार त्याग का तत्व सुनने के लिये <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
इस प्रकार त्याग का तत्त्व सुनने के लिये [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को सावधान करके अब भगवान् उस त्याग का स्वरूप बतलाने के लिये पहले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में शास्त्रविहित शुभ कर्मों को करने के विषय में अपना निश्चय बतलाते हैं-
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को सावधान करके अब भगवान् उस त्याग का स्वरूप बतलाने के लिये पहले दो श्लोकों में शास्त्रविहित शुभ कर्मों को करने के विषय में अपना निश्चय बतलाते हैं-
----
----
<div align="center">
<div align="center">
Line 24: Line 22:
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|


यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप- ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं ।।5।।  
[[यज्ञ]], दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप- ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं ।।5।।  


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Line 59: Line 57:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Latest revision as of 13:36, 6 January 2013

गीता अध्याय-18 श्लोक-5 / Gita Chapter-18 Verse-5

प्रसंग-


इस प्रकार त्याग का तत्त्व सुनने के लिये अर्जुन[1] को सावधान करके अब भगवान् उस त्याग का स्वरूप बतलाने के लिये पहले दो श्लोकों में शास्त्रविहित शुभ कर्मों को करने के विषय में अपना निश्चय बतलाते हैं-


यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् ।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ।।5।।



यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप- ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं ।।5।।

Acts of sacrifice, charity and penance are not worth giving up; they must be performed. For sacrifice, charity and penance— all these are purifiers of wise men.(5)


यज्ञदानतप:कर्म = यज्ञ दान और तपरूप कर्म ; न त्याज्यम् = त्यागने के योग्य नहीं है (किन्तु) ; तत् = वह ; एव = नि:सन्देह ; कार्यम् = करना कर्तव्य है (क्योंकि); यज्ञ: = यज्ञ ; दानम् = दान ; च = और ; तप: = तप (यह तीनों) ; एव = ही ; मनीषिणाम् = बुद्धिमान् पुरुषों को ; पावनानि = पवित्र करने वाले हैं ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख