गीता 4:11: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:00, 4 January 2013

गीता अध्याय-4 श्लोक-11 / Gita Chapter-4 Verse-11

प्रसंग-


यदि यह बात है, तो फिर लोग भगवान् को न भजकर अन्य देवताओं की उपासना क्यों करते हैं ? इस पर कहते हैं-


ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ।।11।।




हे अर्जुन[1] ! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।।11।।


Arjuna, howsoever men seek Me; even so do I approach them; for all men follow My path in every way. (11)


पार्थ = हे अर्जुन; ये = जो; माम् = मेरे को; यथा = जैसे; प्रापद्यन्ते = भजते हैं; अहम् = मैं (भी); तान् = उनको; तथा = वैसे; एव = ही; भजामि = भजता हूं (इस रहस्य को जानकर ही); मनुष्या: = बुद्धिमान् मनुष्यगण; सर्वश: =सब प्रकार से; मम = मेरे; वर्त्म = मार्ग के; अनुवर्तन्ते = अनुसार बर्तते हैं।



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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