गीता 9:15: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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भगवान् के गुण, प्रभाव आदि को जानने वाले अनन्य प्रेमी भक्तों के भजन का प्रकार बतलाकर अब भगवान् उनसे भिन्न श्रेणी के उपासकों की उपासना का प्रकार बतलाते हैं – | भगवान् के गुण, प्रभाव आदि को जानने वाले अनन्य प्रेमी [[भक्त|भक्तों]] के भजन का प्रकार बतलाकर अब भगवान् उनसे भिन्न श्रेणी के उपासकों की उपासना का प्रकार बतलाते हैं – | ||
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दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्रा का ज्ञान यज्ञ के द्वारा अभिन्न भाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं, और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट् स्वरूप परमेश्वर की पृथक् भाव से उपासना करते हैं ।।15।। | दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्रा का ज्ञान [[यज्ञ]] के द्वारा अभिन्न भाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं, और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट् स्वरूप परमेश्वर की पृथक् भाव से उपासना करते हैं ।।15।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 10:31, 5 January 2013
गीता अध्याय-9 श्लोक-15 / Gita Chapter-9 Verse-15
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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